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Monday, December 16, 2013

एक स्याह रात

मेरे भीतर एक स्याह रात पलती  है
तू अपनी दस्तकों से इसमें उजाले न भर
मुझे इन वीरानियों की एक आदत सी है
तू अपनी बगिया के इसमें फूल मत भर
मैं रोज़ सूरज सी उगती हूँ ,मरती हूँ कभी
तू मेरे लिए अपनी आँख के कोरे नम मत कर
सपने सा है तेरा आना मेरी दुनिया में
प्यार करता है तो कर पर इज़हार ना कर 

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