ना सुनती है
ना कहती है
यह भीड़ है
खामोशी से
सिर झुका कर
पीछे पीछे
चलती है।
आवाज़ गुम है
आंखे पथरा चुकीं
कान बंद हैं
और पड़ चुके हैं
अक्ल पर-पत्थर
शून्य है हवा में
जहां यह बहती है।
यह भीड़ है
आज्ञाकारी शिशु सी
बस पीछे पीछे
चलती है।
उगता सूर्य
जंगलों के पीछे कैद है
डूबता सूरज
रोटी में ढल चुका
श्वासों को पहरे में रखती है
बेतुके सवालों में
उलझती है
यह भीड़ है
बिना बात के
कभी भी भड़कती है
अन्यथा
चुप चाप एक दूजे
के पीछे पीछे
बस चलती है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू