एक अधूरी कहानी
कुछ चुप से शब्द
छतें टापती वो बातूनी आँखों
शरमा कर झुकती पलकें
और चहचहाते पक्षियों के पंखो के नीचे
फागुनी मौसम की अंगड़ाई में
कपकपाती अँगुलियों के पोरों को महसूस
करते दो हाथ
और अनजाने डर का वो नाज़ुक सा स्पंदन
बस यही तो
इतनी सी कहानी है
अनकही अनबूझी पहेली सी
ज़िंदगी की
by me मनीषा
कुछ चुप से शब्द
छतें टापती वो बातूनी आँखों
शरमा कर झुकती पलकें
और चहचहाते पक्षियों के पंखो के नीचे
फागुनी मौसम की अंगड़ाई में
कपकपाती अँगुलियों के पोरों को महसूस
करते दो हाथ
और अनजाने डर का वो नाज़ुक सा स्पंदन
बस यही तो
इतनी सी कहानी है
अनकही अनबूझी पहेली सी
ज़िंदगी की
by me मनीषा
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