एक दिन जब हम साथ होंगे
एक पास होंगे
तब शायद प्यार के ढंग बदल जायेंगे
कहने के अंदाज़ बदल जायेंगे
साथ साथ होगा तब
हमें हर एहसास
देखेंगे हम तब एक साथ
बारिश की बूंदों से नाम होती हरी घास
और सुनेंगे साथ-साथ
पत्तों से ढुलकती शबनम की आवाज़
गंध भरेगी माटी
हमारे भीतर साथ-साथ
और साथ ही भीग जाएँगे
हम किसी तेज़ फुहार में
कभी बहुत सवेरे
आँगन बुहार मैं
जब भीतर आऊंगी
तब पाऊंगी तुमने फिर
घर बिखरा दिया है
या गीला फर्श मिट्टी से भर दिया है
मैं झुन्झुलाऊंगी और चिल्लाऊंगी भी तुम पर
तुम तब शायद हंस दोगे
और एक घूँट में चाय ख़तम कर
चल दोगे अपने काम पर
मन में एक गुदगुदाता एहसास लिए
कभी किसी छुट्टी के दिन रसोई में खड़े हो कर
तुम , मुझसे कुछ बनवाओगे
और फिर
मेरी ही नुक्ताचीनी भी करोगे
यूंही कभी-कभी सताओगे मुझे तुम
मुझ रूठी हुई को मनाओगे भी तुम
कभी जब दस्तक सुन मैं किवाड़ खोलूँगी'
तब हवा के भीने झोंके से तुम मिलोगे
दरवाज़े के उस पार
कितनी ही शरारते होंगी
रोज़ कितनी ही बातें होंगी
घर की दफ्तर की
अनुभवों की
नित नई- नई नोक झोंक होगी
कभी शायद जब हम साथ होंगे
एक पास होंगे