tag:blogger.com,1999:blog-54403210225689056332024-03-17T00:23:08.536+05:30मेरी डायरी के कुछ पन्ने माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए
इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोएManishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.comBlogger410125tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-84289546389178501292024-03-03T12:31:00.002+05:302024-03-03T12:31:20.410+05:30तुम तक आने के सब रास्ते<p> तुमने बंद कर दिए </p><p>तुम तक आने के सब रास्ते</p><p>अब किस हवाले से </p><p>हक जताते हो।।</p><p><br /></p><p>मैं कोई पुराना वृक्ष नहीं</p><p>आंगन का </p><p>जो प्रस्तुत हो रहूं</p><p>हर प्रहार का </p><p>और भीतर ही भीतर </p><p>हर गाड़ी कील का</p><p>दंश सहती रहूं</p><p>ताकि तुम उनसे बांधी रस्सी पर </p><p>सुखाते रहो अपने दंभ </p><p>और मेरे तने पर कुरेदते रहो</p><p>अपने प्यार की परिभाषाएं।।</p><p><br /></p><p>मीत मेरे मैं क्षण क्षण </p><p>मिलती इस उपेक्षा से </p><p>छलनी हो चुकी हूं।</p><p>मेरे पास कोमल स्पंदन महसूस </p><p>करने की सभी संभावनाएं</p><p>मिट चुकी हैं।</p><p><br /></p><p>तुम्हारी क्या अपेक्षा है </p><p>अब मुझे नहीं मालूम</p><p>तुम्हारे शाब्दिक तीरों और </p><p>क्रूर कटाक्षों की ग्लानि को</p><p>पुनः पुनः सहलाने को </p><p>मैं तैयार नहीं हूं।</p><p><br /></p><p>बहुत देर हो चुकी मेरे मीत</p><p> इस जीवन संध्या तक</p><p>तुम्हारे संग और चलने को अब</p><p>मैं तैयार नहीं हूं।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-3273827353969874922024-02-26T11:58:00.003+05:302024-02-26T11:58:37.092+05:30जीवन घट<p> इस जीवन घट के दर्पण में </p><p>सिर्फ तुम्हारा ही अक्स नज़र आता है </p><p>मेरे जीवनकी मरुस्थली में </p><p>तुम </p><p>एक वटवृक्ष से खड़े हो </p><p>हर पल अपनी डालियों में समेटे </p><p>प्यार कि छाया देते तुम </p><p>जीवन मीत का अहसास देते तुम </p><p>खड़े हो </p><p>गौर करती हूँ कभी तो लगता है </p><p>इस जीवन सरिता का सागर तुम हो </p><p>पर </p><p>यात्रा अभी अधूरी है , </p><p>मुझे अपने किनारों </p><p>की तृषा मिटानी है </p><p>औ' तुम्हे संसार में अमृत बरसाना है </p><p>हम तय कर रहे हैं अपना अपना यह सफ़र </p><p>इंतज़ार शायद लम्बा हो जाए </p><p>हो सकता है सांझ हो जाए </p><p>पर याद रखना </p><p>हर रात सुबह का पैगाम होती है </p><p>फिर सरिता को तो विलीन होना ही सागर में </p><p>चाहे अमावस छ जाए </p><p>तुम इंतज़ार करना</p><p> बहता पानी </p><p>चट्टानों में भी राह खोज लेता है </p><p>जानती हूँ तुम चाँद को देख कर बेसब्र हो जाओगे </p><p>पर सुबह आने पर </p><p>तुम्हारे चेहरे की धीर मुस्कान </p><p>मेरे मन दर्पण में भी झलकेगी </p><p>इस आसर संसार में </p><p>वह मूक मुस्कान </p><p>जो तुम्हारी और मेरे आँखों में दमकेगी </p><p>हमारे इस मिलन का द्योतक होगी </p><p>इसलिए साथी तुम इंतज़ार करना </p><p>विश्वास करना </p><p>मेरे आने का </p><p>तुम में विलीन होने का </p><p>तुम इंतज़ार करना </p><p><br /></p><p>मनीषा</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-22845230049047881042024-02-20T14:12:00.000+05:302024-02-20T14:12:00.495+05:30आज भोर सूरज उगा है <p> आज भोर सूरज उगा है</p><p>रक्तिम लालिमा लिए</p><p>कुछ अपराधी सा</p><p>स्वयं को दुत्कारता सा</p><p>शायद उदास है </p><p>कल फिर एक मासूम झूल गया था</p><p>एक फंदे से ।</p><p>गुस्से में आ कर विरोध से उसने</p><p>स्कूल की बेंच तोड़ी थी</p><p>उसने पुकारा था </p><p>मेरी तरफ देखो</p><p>मुझे सुनो</p><p>मैं अकेला हूं </p><p>तन्हा हूं</p><p>शायद सबसे बुरा हूं</p><p>पर मेरी सुनो</p><p>सबको इजाज़त दे दी है तुमने </p><p>बोर्ड में बैठने की</p><p>मुझे भी तो दो एक मौका ।</p><p>मेरी गलतियां उफ्फ</p><p>कैसे मेरी पीठ</p><p>पर कंटीली झाड़ियों सी उग आई हैं</p><p>मां की आंखे </p><p>पिता के प्रश्न</p><p>कैसे होगा प्रायश्चित।</p><p>मेरी छोटी छोटी भूलें </p><p>जंगल सी आज खड़ी हैं</p><p>मेरे सामने</p><p>मैं चिल्ला रहा हूं</p><p>मेरे साथी तुम मेरी आवाज़</p><p>क्यों नहीं सुनते।।</p><p> आह! ये पीड़ा</p><p>मृत्यु आओ मुझे अपना लो।</p><p><br /></p><p>कल एक जीवन हार गया</p><p>कड़े नियमों के आगे</p><p>पता नहीं था उस एक बेंच की कीमत</p><p>इतनी अनमोल थी।</p><p><br /></p><p>अरे रोको कोई इसे</p><p>कोई तो कहो</p><p>इन आशाओं की बलिवेदी</p><p>पर खड़े इन मासूमों से...</p><p>सुनो बच्चों</p><p>तुम तोड़ दो सारे बेंच</p><p>फांद जाओ ये स्कूलों</p><p>की दीवारें</p><p>छू लो आसमां</p><p>और ये जो रस्सियां बुलाती हैं ना तुम्हे</p><p>बांधने को,फंदे बुनने को</p><p>उन्हें जला डालो</p><p>ग्लानि के हर पौधे को</p><p>कुचल डालो</p><p><br /></p><p>सुनो बादलों को गरजते</p><p>देखो हवाओं को बदलते </p><p>जीवन बड़ा है </p><p>मृत्यु से कहीं अधिक विशाल</p><p>तुम आवाज देना </p><p>ये नीला आसमां </p><p>बहुत दूर तक फैला है</p><p>इसके नीचे तुम्हारे लिए भी है</p><p>एक जगह</p><p>चांद सी शीतल</p><p>नर्म सी </p><p>सुनो मेरे बच्चे</p><p>मृत्य जब जब तुम्हें बुलाए</p><p>तुम जीवन को चुनना।।</p><p>अभी बहुत कुछ है </p><p>जो जीने लायक है।।</p><p>तुम कल तक रुको तो </p><p>देखोगे,</p><p>कल उगने वाला सूर्य </p><p>सुनहला होगा </p><p>रक्तिम लाल नहीं।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-69256331746493280632024-02-19T02:43:00.002+05:302024-02-19T02:43:27.004+05:30शब्द आघात करते हैं<p> </p><p>शब्द आघात करते हैं।</p><p>जलते हैं, कुढ़ते हैं</p><p>मन पर मूक प्रहार करते हैं।।</p><p><br /></p><p>शब्द आघात करते हैं।।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>चुभते हैं शूल से </p><p>सीने में सिल से गड़ते हैं</p><p>अस्तित्व पर बेहिचक सवाल करते हैं।।</p><p><br /></p><p>शब्द आघात करते हैं।।</p><p><br /></p><p>घूमते हैं दिलो दिमाग पर</p><p>गूंजते हैं बिस्तर की सलवटों पर </p><p>रात दिन बस परेशान करते हैं।।</p><p><br /></p><p>शब्द आघात करते हैं।।</p><p><br /></p><p>तुम्हारे शब्द बस अब </p><p>बार बार वही सवाल करते हैं</p><p>मन पर प्रहार करते हैं</p><p>शब्द आघात करते हैं।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-66568750797776633752024-01-28T21:11:00.003+05:302024-01-28T21:11:28.820+05:30इक तेरी खामोशी है एक मेरा इंतज़ार<p> इक तेरी खामोशी है एक मेरा इंतज़ार।</p><p>ना वो टूटती है, ना ये ख़त्म होता है।।</p><p><br /></p><p>मिलते हैं लोग क्यों बिछड़ने को सदा।</p><p>ना मालूम इश्क में ये कायदा क्यों होता है।।</p><p><br /></p><p>तेरी रूखस्त तक रुकी थी मैं वहीं तुझे देखते।</p><p>ना जाने तुझ से अब मिलना कब होता है।।</p><p><br /></p><p>लिखती हूं मिटाती हूं रोज वही एक पैगाम।</p><p>ना जाने तुझ से कहने का हौसला कब होता है।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-4043371984707670282024-01-26T07:39:00.002+05:302024-01-26T07:39:14.204+05:30जो तुम आओ<p> कितने रत्न पहनूं</p><p>कितने चिन्ह सजाऊं</p><p>चौखट पर </p><p>जो तुम आओ ।।</p><p><br /></p><p>कहो तो, मंत्र जपूं और </p><p>तीर्थ कर आऊं नंगे पांव</p><p>जो तुम आओ।।</p><p><br /></p><p>क्या वास्तु दोष है </p><p>या जाऊं किसी बामन से</p><p>पत्री बचवाऊं</p><p>जो तुम आओ ।।</p><p><br /></p><p>नसीब का है </p><p>क्या ये खेला ?</p><p>क्या ये कोई साजिश है</p><p>दुनिया की?</p><p>करूं क्या उपाय</p><p>कि मेरी तकदीर में </p><p>जो तुम आओ।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-29107133044776226912024-01-13T16:25:00.003+05:302024-01-13T16:25:32.015+05:30इश्क तो हो सकता है ना<p>इश्क तो हो सकता है ना</p><p>खिली सी धूप हो और </p><p>हवा से एक जुल्फ बिखर जाए </p><p>एक उन्मुक्त हंसी जाने </p><p>कब मन को छू जाए </p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>घोर कुहासा हो</p><p>कांपती ठंड में </p><p>लाल टोपी और सफेद मफलर में </p><p>कब कोई दो आंखे टकरा जाएं</p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>किसी टपरी पर साथ बैठे </p><p>चाय के प्यालों के बीच </p><p>उठते ठहाकों में </p><p>जब मन मिल जाएं </p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>किसी रेल के सफर में </p><p>किताबों के पन्ने पलटती तुम</p><p>कभी मिल जाओ</p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>सड़क किनारे बातों बातों में</p><p>सामने आसमां पर </p><p>जब चांद में तुम्हारा अक्स दिखने लगे </p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>भरी भीड़ में </p><p>सड़क पार करते तुम जब</p><p>मेरा हाथ थाम लो</p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>अजनबी शहर में </p><p>एक दस्तक से खुलते </p><p>दरवाजे पर जब तुम मिल जाओ</p><p>तब इश्क तो हो सकता है ना?</p><p><br /></p><p>तब एक शायर बुदबुदाया </p><p>हां शायद इश्क तो कहीं भी </p><p>कभी भी किसी से भी </p><p>हो ही सकता हैं</p><p>ये आँसा होगा बस ये शर्त मत रखना।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-44114770534686312192024-01-11T23:38:00.001+05:302024-01-11T23:38:08.196+05:30मैं पूछना चाहती हूं<p> मैं पूछना चाहती हूं</p><p>नदी से क्यों चुप सी बहती है?</p><p>पूछना चाहती हूं पहाड़ से </p><p>क्यों दर्प से तना है ?</p><p>पूछना है मुझे समुद्र से </p><p>क्यों इतना बेचैन है?</p><p>ओर पूछना है इस धरती से </p><p>क्यों सब सहती है?</p><p><br /></p><p>पूछना तो मुझे यह भी है</p><p>ईश्वर से</p><p>निष्पक्ष क्यों नहीं है तुम्हारा न्याय?</p><p>किंतु परंतु से हट कर </p><p>चुप है ईश्वर </p><p>निरुत्तर खड़ा है </p><p>एक स्वर्णद्वार के परे </p><p>शायद अपनी ही कृति पर विस्मित</p><p>अचकचाया सा प्रश्नों से बचता हुआ।</p><p>आखिर कहे भी तो क्या?</p><p>शायद उसने भी नहीं सोचा था </p><p>सूर्य और चन्द्र के बीच </p><p>मन का इतना गहन अंधेरा होगा।</p><p>और मैं</p><p>एक प्रश्न चिन्ह सी</p><p>हाशिए पर खड़ी हूं</p><p>निरुत्तर</p><p>निःतांत अकेली।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-7504727892422168512024-01-11T23:37:00.002+05:302024-01-11T23:37:13.773+05:30लड़की<p> लड़की सहमी हुई है</p><p>उसने देखा है आसपास</p><p>मां से सुना है </p><p>बाज़ार स्कूल दफ्तर</p><p>कहीं से भी से सीधे घर ही आना है</p><p>चुन्नी से छाती ढाप कर चलती है</p><p>तेल लगे बालों में </p><p>कस कर बांध लेती है चोटियां</p><p>लेकिन जब वो हंसती है</p><p>तो मोती गिरते हैं</p><p>और उसकी हंसी उसकी </p><p>आंखो में खिलती है।।</p><p>एक दिन किसी बात पर </p><p>सहेलियों के बीच चलते चलते </p><p>वो हंसी थी शायद </p><p>और वो ही उसका दुर्भाग्य था </p><p>अगले दिन से आने लगे थे </p><p>मनचलों के फिकरे </p><p>घर पर कैसे बताती</p><p>उसे पता था गलती उसकी है</p><p>शायद उसे बाहर नहीं जाना चाहिए </p><p>सड़क पर यूं अकेले </p><p>ऐसे में आया एक प्रणय निवेदन</p><p>उसे और डरा गया </p><p>जनून था या वहशीपन</p><p>किसे कहे कैसे कहे </p><p>दोषी तो वो खुद थी</p><p>क्या जरूरत थी ऐसे हंसने की।।</p><p>उसके इंकार ने </p><p>अस्वीकार ने </p><p>मन पर कितनी चोट की</p><p>प्रेम की पराकाष्ठा कुछ ऐसी हुई</p><p>उसका चेहरा एसिड से भिगो गई</p><p>अब उसके वीभत्स चेहरे पर </p><p>मुस्कुराने के लिए होंठ नहीं हैं</p><p>आंखो तक कोई चमक नहीं आती</p><p>आंखे हीं अब नहीं हैं।</p><p>वो अब नियति को स्वीकार </p><p>जीने के लिए विवश है </p><p>न्याय के लिए सदा प्रतिक्षारत है</p><p>और </p><p>उसका प्रेमी अब कहीं जरूर गर्व से भरा </p><p>अट्टाहास लगा रहा है</p><p>कि तुम मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं।</p><p>ऐसी प्रेम कहानियां लिखी नहीं जाती</p><p>सिर्फ जी जाती हैं बंद कमरों में</p><p>और बेमतलब के आंदोलनों में।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-29285337530619671842024-01-07T01:01:00.005+05:302024-01-07T02:24:33.156+05:30श्वास है तो सब है<p> श्वास है तो सब है</p><p>मन धौकनी की तरह </p><p>चलता है तो जग है</p><p>हंसना हसाना</p><p>मिलना मिलाना</p><p>रूठना मनाना</p><p>जीवन है तो सब है</p><p>फिर क्या रहता है</p><p>कुहासे सा विराना </p><p>एक अंतहीन शून्य</p><p>अभी था सब</p><p>अब कुछ नहीं है</p><p>वस्त्र आभूषण</p><p>ढेर से आडंबर</p><p>सब बेकार</p><p>हाथ में स्पर्श का</p><p>अहसास तक नहीं</p><p>आंखों में बस विदाई </p><p>का वो एक आखिरी पल</p><p>मन की कितनी अधूरी बातें</p><p>अधूरे से सपनों की</p><p>टूटी पांखे</p><p>है और था में कितना अंतर</p><p>एक ना भरने वाला </p><p>खालीपन</p><p>ये सारे सूने सूने पल</p><p>आंसू पी कर लगाना</p><p>ये ज़ोर के ठहाके </p><p>अपने खाली मन को </p><p>देना रोज़ दिलासे</p><p>ढूंढना जीने के </p><p>फिर रोज़ नए बहाने</p><p>सबसे कहना </p><p>सब ठीक है </p><p>और दिन के साथ </p><p>उगते जाना ढलते जाना</p><p>सच सांस है तो सब है</p><p>जीने का ये कैसा अधूरा सा</p><p>सबब है।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-3248693557919514982023-12-10T04:31:00.003+05:302023-12-10T04:31:43.998+05:30भुलावे <p> उन्हें रोटी में उलझाए रखना </p><p>मुंह खोलें तो </p><p>जाति पांती में भुलाए रखना</p><p>वाद विवाद करता है प्रतिवादी</p><p>उसे हास्य पात्र बनाए रखना</p><p>ना कुछ कर सको तो </p><p>शहरों के नाम बदल देना </p><p>बहुत कोई बढ़ चढ़ बोले </p><p>तो उस पर कई धाराएं लगा देना </p><p>याद रहे ये भोली जनता है </p><p>इसे भविष्य के वादों</p><p>और इतिहास की गलतियों में </p><p>बहलाए रखना।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-68130732980739636602023-11-21T00:18:00.002+05:302023-11-21T00:18:51.109+05:30तुम बिन<p> थोड़ा सा पागल हो जाना </p><p>स्वीकार मुझे </p><p>तुम बिन जीना कितना दुश्वार मुझे।।</p><p> </p><p>बिना पैर के चलती हूं</p><p>बिना हंसी के हंसती हूं</p><p>तुम बिन कहां कोई व्यवहार मुझे ।।</p><p><br /></p><p>ना आसमां कोई सिर पर मेरे </p><p>ना पैरों तले ज़मीन मिले </p><p>तुम बिन त्रिशंकु सी हर ठौर मुझे ।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-32160861475684401852023-11-21T00:03:00.002+05:302023-11-21T00:03:37.041+05:30उठो ना मां <p> अजीब ही है</p><p>जैसे गले में एक शब्द घुट कर रह गया </p><p>उस दिन...</p><p>मां</p><p>आज भी उतनी ही वेदना से </p><p>भीतर घुड़मता है वही बार बार ।।</p><p>यहीं आ कर चेतना शून्य हो जाती है</p><p>मन तर्क कुतर्क से परे </p><p>बस चीखना चाहता है... मां उठो।।</p><p><br /></p><p>मन है कि बस </p><p>देखना चाहता है वही स्नेहिल मुस्कान </p><p>महसूस करना चाहता है वही स्पर्श</p><p>जो पूरी प्रकृति में कहीं नहीं है</p><p>और अतीत की कोई स्मृति </p><p>जैसे ही मन गुदगुदाती है</p><p>नजर घूमती है बगल में कि अरे मां को बताएं</p><p>लेकिन वो जगह तो खाली है</p><p>वहां कोई नहीं है सुनने को</p><p>और फिर मन चीख उठता है</p><p>मां... उठो।।</p><p><br /></p><p>छुट्टियां आती हैं त्योहार आते हैं </p><p>जिनके पास मां हैं वो लौटते हैं </p><p>उनके पास घर हैं लौटने को </p><p>हमारे पास भी है एक मकान </p><p>एक घर हमारी संतानों के लिए </p><p>पर हमारा घर ?</p><p>दिए की लड़ियां लगाते हुए </p><p>मां की सब सावधानियां याद आती हैं</p><p>दूर से जगमग देख कर मन सोचता है</p><p>पूंछू ठीक लग रही है ना</p><p>लेकिन किससे</p><p>और फिर मन चीख उठता है </p><p>मां ....सुनो ना</p><p>कहां गईं?</p><p>मां...उठो </p><p>तुम्हारी संतानें अभी है </p><p>तुम कैसे जा सकती हो?</p><p>किसने तुम्हें छूट दे दी कि</p><p>चल दो इस अंतिम सफर पर</p><p>ना नहीं</p><p>मां....उठो, </p><p>उठो ना मां ।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ्तगू</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnswUL2PzISHQYfa3iHDWDqxYJryCyEfiemBxb1n2NvgzHeQr1nSYFFisbfKiPdEGlMawCIbslF9PMAh_-LZVdeocm2B88ZIFSKfoeDxayQSSmy22biJa9waRanr2DAn20QbNEBwqfiIwHO90u5HjCa2eK9xS_GcTXJZBxxA5T5dOb8Emr6yYP4UCLGIxc/s849/FB_IMG_1700495378379.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="849" data-original-width="528" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnswUL2PzISHQYfa3iHDWDqxYJryCyEfiemBxb1n2NvgzHeQr1nSYFFisbfKiPdEGlMawCIbslF9PMAh_-LZVdeocm2B88ZIFSKfoeDxayQSSmy22biJa9waRanr2DAn20QbNEBwqfiIwHO90u5HjCa2eK9xS_GcTXJZBxxA5T5dOb8Emr6yYP4UCLGIxc/s320/FB_IMG_1700495378379.jpg" width="199" /></a></div><br /><p><br /></p><p><br /></p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-12713172190740816242023-11-18T00:58:00.002+05:302023-11-18T01:01:36.846+05:30सुलगते शहर <p> ये उठता धुंआ ये सुलगती लाशें</p><p>ये बच्चों की चीखें </p><p>ये स्त्रियों का रूदन</p><p>ये खंडहर शहरों के </p><p>ये मलबों में दबे मासूम हाथ</p><p>ये अध कटे बदन</p><p>ये सड़कों पर चीथड़े मांस के </p><p>ये किस ने बारूद से उड़ा दी हैं</p><p>मानवता की धज्जियां?</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-29722700345086152822023-11-07T14:40:00.003+05:302023-11-07T14:40:42.220+05:30अपने अपने द्वीप <p> मैं एक द्वीप पर हूं</p><p>एक दायरे के भीतर</p><p>सुरक्षित</p><p> महफूज़</p><p>मुझ तक नहीं आतीं </p><p>कोई चीख पुकार।।</p><p><br /></p><p>आस पास बहुत धुंध है</p><p>व्यवहार की परंपरा की</p><p>इसलिए मुझ तक नहीं</p><p>आते लहूलुहान बच्चों की </p><p>अर्धनग्न औरतों चेहरे ।।</p><p><br /></p><p>मेरे आस पास शोर बहुत है</p><p>आरतियां हैं गुनगुनाते नग्मे हैं</p><p>इसलिए मुझ तक नहीं आता </p><p>रूदन और गिड़गिड़ाना</p><p>आरतों और बच्चों का ।।</p><p><br /></p><p>मेरे आस पास है </p><p>रसोई की गंध है पकवानों की खुशबू</p><p>इसलिए मुझ तक नहीं आती</p><p>जलते अंगो और सड़ती लाशों</p><p>की दुर्गंध।।</p><p><br /></p><p>मैं अपने द्वीप पर सुरक्षित हूं </p><p>महफूज हूं।।</p><p><br /></p><p>मेरे पास बहुत कुछ नहीं हैं </p><p>जो मुझे विचलित करता है।।</p><p>और मैं आवाज़ भी उठाती हूं </p><p>अपने लिए मांगती हूं</p><p>अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता</p><p>आस पास घूमने की आजादी</p><p>लेकिन मेरी इस चुप ने </p><p>मुझे दिया भी बहुत</p><p>एक छत, एक घर </p><p>वक्त पर खाना पूरा परिवार </p><p>थोड़ा सुख थोड़ा प्यार।।</p><p>और मुझे मिला है </p><p>घर संसार</p><p>एक अदद बहुत बड़ा सा कलर टीवी है</p><p>जिस पर आती हैं खबरें</p><p>युद्ध की दंगाइयों की </p><p>और </p><p>मुझे स्वतंत्रता है </p><p>कि डर से उसे बंद कर दूं।</p><p>कस के आंखे भींच लूं</p><p>मुंह में कपड़ा ठूंस लूं</p><p>और कानों में रूई भर लूं</p><p>क्योंकि मैं जानती हूं</p><p>मैं अपने द्वीप पर सुरक्षित हूं </p><p>महफूज़ हूं।।</p><p><br /></p><p>शायद यही होता है</p><p>सब अपने अपने द्वीप पर </p><p>बैठें हैं </p><p>सुरक्षित महफूज़।।</p><p><br /></p><p>थोड़े थोड़े गुलाम लेकिन </p><p>महफूज़</p><p>अपने अपने द्वीप पर।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-13877944838293550362023-11-06T23:36:00.003+05:302023-11-06T23:36:50.528+05:30मैं भूखा हूं <p> मुझसे अधिकार और अन्याय की बातें मत करना </p><p>मैं भूखा हूं</p><p>बात मुझसे सिर्फ रोटी की करना ।।</p><p><br /></p><p>ना शर्म नहीं ग्लानि नहीं</p><p>कोई लाज लज्जा नहीं</p><p>मैं भूखा हूं </p><p>बात मुझसे सिर्फ रोटी की करना ।।</p><p><br /></p><p>क्या बाबू तुम क्या जानो</p><p>खाली पेट की खाली बातें</p><p>भूख से तड़प वो</p><p>आंत दाब नशीली नींद सोना ।।</p><p><br /></p><p>घूंट भर पानी गट गट पीना</p><p>रोज़ जीना रोज़ सौ बार मरना </p><p>बाबू मैं भूखा हूं </p><p>मुझे चाहे सौ गाली देना </p><p>बस बात मुझसे सिर्फ रोटी की करना ।।</p><p><br /></p><p>और बात ही क्यूं</p><p>अगर हो सामर्थ तुम्हारी तो </p><p>पहिले एक रोटी देना</p><p>फिर पीछे चाहे जितने आश्वासन देना ।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-78253294589064555592023-11-05T13:41:00.001+05:302023-11-05T13:41:10.400+05:30 वो मुझको मेरी नजर से कब देखता है<p> वो मुझको मेरी नजर से कब देखता है</p><p>वो जब भी देखता है मुझमें आईना देखता है।।</p><p><br /></p><p>यूं तो मालूम है उसको मेरी मजबूरियां</p><p>फिर भी मुझसे मिलने के ठिकाने देखता है।।</p><p><br /></p><p>क्यों मिलता है वो ऐसे खुलकर मुझसे</p><p>ऐसे तो हर शख्स अपनी कैफियत देखता है ।।</p><p><br /></p><p>कह कर भी वो कुछ कहता नही है </p><p>वो जमाने की नजर देखता है ।।</p><p><br /></p><p>यूं तो है ये शहर उसके लिए अजनबी</p><p>वो मुझे क्यों फिर अपनों में देखता है।।</p><p><br /></p><p>लिख कर भेजा है एक खत मेरे नाम</p><p>मुझसे बतियाने के वो बहाने देखता है।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p><p><br /></p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-65103125531441295102023-10-24T22:44:00.004+05:302023-10-24T22:44:32.431+05:30तन्हा तन्हा चलते रहे<p> तन्हा तन्हा चलते रहे </p><p>एक सफर से हम भी गुजरते रहे।</p><p>सुबह बुनते रहे कुछ रेशमी धागे</p><p>रात भर गिरह खोलते रहे।।</p><p><br /></p><p>ना समझा इश्क ने कभी हमें</p><p>ना हम समझ सके कभी इश्क को।</p><p>इस तरफ़ लिखते रहे हम खामोशियां</p><p>उस तरफ वो चुप्पियां सुनते रहे।।</p><p><br /></p><p>हाथ थाम कर इस तरह बेबस किया</p><p>उन्होंने, हम ना किसी काबिल रहे।</p><p>इस तरह गुजरा उम्र का सफर</p><p>हम राह तकते रहे और वो आते ही रहे।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-23844527612699233782023-09-17T11:17:00.004+05:302023-09-17T11:17:30.331+05:30अंतिम विदाई अंतिम प्रणाम <p>आज फिर मैं जो सफर पर चला</p><p>किसी ने लौट कर आने को ना कहा</p><p>ना माथा चूमा ना दोनो हाथ उठा आशीष भरा</p><p>किसी ने आंचल से नाम आंखे पोछते विदा ना किया</p><p>आज फिर जो मैं सफर पर चला।।</p><p><br /></p><p>ना हाथ में डब्बा था नमकीन भरा </p><p>ना घी चुपड़ी रोटी और आचार </p><p>ना थी घर की वो पुरानी नेमते</p><p>थोड़ी सी रोली चावल की गोदी</p><p>और झूठमूठ के वादे और </p><p>वो सच्ची कसमें और सख़्त हिदायते</p><p>आज जो फिर मैं सफर पर चला।।</p><p><br /></p><p>ना लौट कर आने को कहने वाले पिता थे </p><p>ना ठीक से रहना कहती अम्मा </p><p>ना फिर आने को कहती भाभी </p><p>ना पीठ थपथपाते भईया </p><p>था बस एक सूना द्वार</p><p>जर्जर होती जा रही दीवार से झड़ता पलास्तर</p><p>और जंग खाता चुप सा जंगला</p><p>आज जो फिर मैं सफर पर चला।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-34554392854915486682023-09-16T19:02:00.005+05:302023-09-16T21:29:50.837+05:30द्वार बंद कर आई हूं<p>द्वार बंद कर आई हूं</p><p>सब चाबियां समेट लाई हूं</p><p>लेकिन ताले कहां रोक सकेंगे</p><p>बदलते समय के प्रवाह को</p><p>फिर भी एक समंदर अपने भीतर</p><p>समेट लाई हूं।।</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।।</p><p><br /></p><p>सांकल चुप थी दीवारें उदास </p><p>हां एक पंखा था पूरी शिद्दत के साथ घूमता</p><p>एक अधूरे दिलासे की तरह रोकता</p><p>उसे भी अलविदा कह आई हूं।</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।।</p><p><br /></p><p>आकाश बहुत नीला था उस छत पर</p><p>चांद सदा पूरा था उस आंगन पर </p><p>शाम उतरती थी सुनहरी भोर होती थी रूपहली </p><p>एक पैगम्बर था आगे पीछे एक ईश्वर था</p><p>अज़ान और घंटियों से भरी भोर छोड़ आई हूं</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।।</p><p><br /></p><p>तन पर पगधूलि लपेट आई हूं</p><p>छत पर थोड़ा भीग आई हूं</p><p>एक आखिरी बार छज्जे से </p><p>उतरता सूरज देख आई हूं</p><p>चिर परिचित वो शाम बटोर लाई हूं।</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।।</p><p><br /></p><p>फर्श पर धूल के बीच थे वो गढ्ढे </p><p>जो हमने तुमने मासूम उंगलियों से कभी भरे थे</p><p>एक चौखट थी कच्ची सी, मां के हाथ की बनी</p><p>उस पर इतराता बंदनवार छोड़ आई हूं</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।।</p><p><br /></p><p>एक गठरी बातें उन दीवारों की समेट लाई हूं</p><p>थोड़ी खुशी थोड़ी राहतें संग ले आई हूं</p><p>पूजा घर से भगवान उठा लाई हूं </p><p>हमारी उस देहरी पर शीश नवा आई हूं</p><p>तुम्हारे लिए मां के पुराने खत संभाल लाई हूं</p><p>अब द्वार बंद कर आई हूं।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू </p><p><br /></p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-24042829337659244352023-09-13T23:30:00.004+05:302023-09-13T23:30:36.191+05:30एक कमी सी बनी रहती है<p> ख्यालों में एक नदी सी बहती है</p><p>चांदनी भी रात भर उदास रहती है</p><p>भीतर बाहर एक सर्द नमी सी बनी रहती है</p><p>वो आता है ले कर लौट जाने की तारीख</p><p>घर में एक कमी सी बनी रहती है।।</p><p><br /></p><p>मुस्कुराहटें उदास सी खिली रहती हैं</p><p>बना तो लिया है आशियां अपना</p><p>आने वालों की कमी सी रहती है </p><p>शायद ना दे सकी उसे </p><p>रुकने की कोई वजह</p><p>जो उसे जाने की पड़ी रहती है।।</p><p><br /></p><p>बिछी चादर पर एक सिलवट सी पड़ी रहती है</p><p>बिस्तर के किनारे एक किताब अधूरी सी रखी रहती है</p><p>भोर आती है चुपके से आंगन में फैली धूप के साथ</p><p>रात भर उसके आने की आहट लगी रहती है।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा</p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-37010389141952140182023-09-12T22:34:00.006+05:302023-09-13T08:43:57.535+05:30कबाड़<p>सुनो तुम जिसे कबाड़ कह रहे हो ना </p><p>वो मेरा बीता कल है गुज़रा समय है मेरा</p><p>ये जो महक रहा है ना बंद बक्सा सा </p><p>उसमे सुगंध है मेरे बचपन की</p><p>कस के ताले जड़ के बंद किया था </p><p>मां के कहने पर ।</p><p>उसने संभाल कर रखे थे इसमें,</p><p>कुछ काढ़े हुए गिलाफ तकिए और चादर ।</p><p>हां! एक कांसे की कटोरी और गिलास भी था, </p><p>मेरी नानी ने दिया था उसे ब्याह में।</p><p>हां! ये पुरानी अलमारी जो अब जर्जर सी दिखती है जो</p><p>कभी दहेज में लाईं थी मां,नई चमकती।</p><p>हर साल दिवाली पर हम इसे पेंट कर के नई सी कर देते,</p><p>और मां फिर फिर किस्सा दोहराती थी;</p><p>चौथी मंजिल से गिरी थी एक बार घर बदलते हुए </p><p>देखो कुछ ना हुआ बस पांव टेढ़ा हुआ जरा </p><p>कितना मजबूत लोहा है।</p><p>हां ! हां !जानती हूं पुराना किस्सा है।</p><p>कई बार कहा सुना है।</p><p>अब इस जंग खाती अलमारी से मोह क्या ?</p><p>मोह तो किस्से से है याद से है।</p><p>उस काली चमड़े की अटैची पर जम के हंसते,</p><p>जब मां कहती हरी है ।</p><p>चमड़ा पुराना हो कर काला हो गया था,</p><p>फिर भी हम खिजाते उसे, क्या मां! रंग नहीं पहचानती?</p><p>और जो ये मेज है, ना इसकी इसी छोटी दराज में,</p><p>पीछे, बिल्कुल पीछे, मै तुम्हारे खत छिपा दिया करती थी,</p><p>चोरी चोरी निकाल कर पढ़ने के लिए।</p><p>इसी तख्त पर तो बेटे की मालिश की थी दादी ने,</p><p>और सिले थे मां और बुआ ने इस पुरानी मशीन पर झबले।</p><p>ये जो बिना पाय और दरवाजे वाली अलमारी है ना</p><p>दादी की है, </p><p>उसकी दराज़ो ने पीढ़ियों की विरासते संभाली हैं।</p><p>कभी रसोई की शान बनी तो कभी पापा कि किताबें संभाली हैं</p><p>पीढ़ी दर पीढ़ी चलती अब बूढ़ी हो चली है</p><p>शायद अब संभाल मांगती है, एक बुजुर्ग की तरह उसे</p><p>भी एक कोने में रहने दो।</p><p>ये जो पुरानी किताब है ना हां!हां! गणित की</p><p>जानती हूं मेरा विषय नहीं है</p><p>लेकिन इसके कुछ पन्नों पर मां के हाथ से लिखे कुछ फुटकर नोट्स हैं धुंधले से , पढ़ने की कोशिश करती हूं</p><p>समझ तो नहीं आते लेकिन याद आती है किशोरी सी मां</p><p>इन पन्नों को पढ़ती हुई</p><p>और ये जो बिना कवर की डायरी है ना इसमें दादी ने उतारी थी पसंदो की रेसिपी</p><p>कहा था हम लिख जाएंगे सब कभी जो तुम्हें बनाना हो।</p><p>हां जानती हूं कोई नहीं खाता अब पसंदे पर </p><p>इसमें दिखती हैं वो बालकनी में बैठी </p><p>अपने झुर्रीदार कांपते हाथों से लिखती जाती थी पूरी दोपहरी</p><p>और ये पापा की डायरी</p><p>इसमें में उतरे हुएं है उनके पसंदीदा शेर </p><p>और दिखते हैं वो किशोर से उमंगों से भरे </p><p>होश संभालते </p><p>इसी से जाना था उन्हें जितना जाना </p><p>पढ़ कर लगता था अच्छा वो भी ऐसे थे</p><p>कितने रोमांच और रोमांस से भरे </p><p>इसी के आखिरी पन्ने पर एक शाम उतरी है </p><p>जब अपनी गुल्लक से उन्हें दिए हुए पैसों का हिसाब</p><p>मैने लिखा था और बकायदा दस्तखत करवाए थे उनसे कि पूरे दो रुपए उन्हें देने हैं, मेरे।</p><p>सुनो कबाड़ नहीं है, अब ढलती उम्र में याद आता बचपन है ये ।</p><p>पहले प्यार का अहसास है, मां दादी का आशीर्वाद है ।</p><p>सुनो!, इसे कबाड़ मत कहना, मेरा बीता कल है ये।</p><p>मेरी निजी धरोहर है ये। मेरा इतिहास है ये।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-60519244798931838582023-09-08T16:47:00.002+05:302023-09-08T16:47:13.240+05:30कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी<p> एक बात अनकही सी कहे जा रहे है</p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>लम्हा लम्हा साथ बैठे शाम गुजरती जा रही है</p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>काम निकाल कर मिलने के जो बहाने बना रहे हैं</p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>नजरें चुरा रहे हैं वो जिस बेचैनी को छिपा रहे हैं </p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>चलने को दोनो कहते हैं फिर भी देर किए जा रहे है</p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>ये जो वक्त बेवक्त की गुफ्तगू में जो कर रहे इशारे हैं </p><p>कुछ उनको खबर है कुछ हमें भी ।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-64611141715597621452023-09-06T21:02:00.002+05:302023-09-06T21:02:20.524+05:30नाम में क्या रक्खा है?<p> नाम में क्या रक्खा है?</p><p>कुछ रख दो।</p><p><br /></p><p>नहीं नहीं ऐसे कैसे</p><p>नाम है तो पहचान है ना</p><p>बिना नाम पहचान कैसे </p><p>कुछ भी कह लोगे क्या?</p><p><br /></p><p>नाम से मान बढ़ता है</p><p>कितना अजीब होगा ना </p><p>नाम अनुचित हो पुकार का हो </p><p>टीटू, छोटू कुछ</p><p>इसलिए कहती हूं बदल डालो।</p><p><br /></p><p>अच्छा सा सुंदर सा</p><p>सही नाम ना हो तो </p><p>भाव ना मिलेगा </p><p>कभी सुना है किसी धनाढ्य का नाम </p><p>छोटू बंटी जैसा कुछ?</p><p>लेकिन हम तो...</p><p><br /></p><p>उहूं नाम बदलेंगे तो पहचान बदलेगी</p><p>वो जो गली के आगे खुली नाली है ना </p><p>किसी का ध्यान नहीं जाएगा उस पर</p><p>लगेगा किसी बड़ी कोठी से हो।</p><p>अरे! तो क्या हुआ खाने को कमाने को ना है</p><p>नाम रखो बड़ा सा जोरदार सा।</p><p>कोई पूछेगा ही नहीं,</p><p>बस मान सम्मान के लिए </p><p>इतना ही तो चाहिए।</p><p><br /></p><p>कहो तो रेडियो टी वी में चलवा दें,</p><p>नाम के आगे सुश्री सुकुमार लगवा दें</p><p>आगे डागदर उकील कुछ लिखवा दें।</p><p>कोई नही पूछेगा,कितनी उधारी चढ़ गई</p><p>उम्र के सत्तर पिचहतर सालों में?</p><p>बस एक बड़ी सी तख्ती लटका देंगे,</p><p>थोड़ा लाइट वाइट लगवा देंगे ।</p><p><br /></p><p>ना ना अरे!घर के आगे सड़कों पर ठेला ना लगाना ।</p><p>वो सुखिया के घर के आगे बहुत गंदगी है,</p><p>गरीब की बस्ती है,</p><p>कुछ लीपा पोती कर दो,</p><p>चलो एक ऊंची दीवार खड़ी कर दो,</p><p>उस पर खूब चित्रकारी कर दो।</p><p>बस काम हो जाएगा।</p><p><br /></p><p>नाम में बस वजन होना चाहिए </p><p>क्या नही हो सकता।</p><p>इसलिए नाम सोच समझ कर बदल डालो।</p><p>बस मान सम्मान के लिए </p><p>इतना ही तो चाहिए।</p><p><br /></p><p>आखिर घर में भी तो चद्दर गिलाफ पर्दे बदलते हो ना</p><p>जो मन आए सो बदल दो </p><p>लगे तो तुम भी थोड़े विकसित हो।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5440321022568905633.post-12559975037234426302023-08-26T22:44:00.004+05:302023-08-26T22:44:50.965+05:30काश! मैं एक भेड़ होती<p> काश! मैं एक भेड़ होती</p><p>लकीर की फकीर</p><p>चलती चुपचाप,</p><p>बिना प्रश्न, सिर झुकाए</p><p>एक दायरे में रहती</p><p>लक्ष्मण रेखा के भीतर</p><p>जीती एक आम सी जिंदगी</p><p>खटती रहती चूल्हे के आगे </p><p>और चलती नटनी सी</p><p> रिश्तों की रस्सी पर</p><p>चारदीवारी की धूरी पर घूमती</p><p>चिंता होती केवल अब क्या पकाना है</p><p>ओह चादर फिर बदलाना है</p><p>खिड़की पर की धूल झाड़नी है</p><p>सवेरे सबको दफ्तर स्कूल जाना है</p><p>पड़ोसन की कटोरी भर चीनी लौटाना है</p><p>एक सरल सा जीवन </p><p>अपने में सिमटा हुआ मैं जीती</p><p>काश मैं भेड़ होती</p><p>तुम्हारे मन की होती तब</p><p>तुमको मैं कितनी पसंद होती।।</p><p><br /></p><p>मनीषा वर्मा </p><p><br /></p><p>#गुफ़्तगू</p>Manishahttp://www.blogger.com/profile/11385817017822538140noreply@blogger.com3