एक रात की बात थी
छिपकली उदास थी
एकटक मुझे घूरते हुए उसने कहा
तुमने मुझ पर अभी तक क्यों नहीं कुछ लिखा
क्या मेरा अस्तित्व तुम्हे नहीं दिखा
जितने नए पुराने कवि हैं
उन्होनें मकोड़ो को भी विषय बनाया है
वर्ड्सवर्थ ने भी मेरा गुण गाया है
तब तुम क्यों मेरी अवहेलना करती हो
क्या मुझे किसी काबिल नही समझती हो
युग -कवि तुम कैसे बनोगी
मुझ पर जब तक नहीं लिखोगी
फिर क्या ,एकाएक
युग कवि बनने की साध मन में लहरा गई
उसे तकते हुए उसकी बात नापते हुए
मैंने पूछा ,
क्या सभी युग-कवि छिपकली पर लिखते हैं
जवाब मिला
छिपकली से अधिक किसी विषय को वे नही चुनते हैं
कहीं भी मुझे फिट कर दो
किसी भी वर्ग का प्रतिनिधित्व ही सौंप दो
पर कविता या कहानी का पात्र यूं ही नही कोई बनता
मन में संशय फिर भी था
मेरा प्रतिरोध फिर भी था
विषय बनने के लिए
तुम्हें उपहास का पात्र बनना होगा
संघर्षों से गुज़रना होगा
कुछ करके दिखाना होगा
या निरुपाय हो कर पछताना होगा
कहने का अभिप्राय है बस इतना
सामान्य से असमान्य बन कर ही रह जाना होगा
छिपकली ने अपना कथन फिर दोहराया
अपने निश्चय को द्रढ़ता से दोहराया
सुनहरे चश्मे से मेरा भविष्य दिखलाया
बोली
हर साधारणता की भी अपनी कहानी होती है
युग-कवि तुम कैसे बन पाओगी
यदि साधारणता में असाधारणता नहीं खोज पाओगी
छिपकली की बात रास आ गई
युग-कवि होने की साध मन में लहरा गई
छिपकली पर ही कुछ लिख डालने को कलम ललचा गई
अब समस्या थी कि कविता की छिपकली
नेता है या अभिनेता है ,भोक्ता है या उपभोक्ता है
जनता है या जनार्दन है , शासक है या दू:शासन है
लाजवंती है या आधुनिकता में रंगी दुमकटी है
भावपूर्ण अभिव्यक्ति है या फ़िल्मी गीत कोई चटक है
यानि युग-कवि बनने का कौन सा सरल शार्ट कट है
अब छिपकली पर ही छोड़ा चुनाव था
यह उसका ही सुझाव था
हमने अपने युग-कवि बनने की नींव डाली
पूरी छिपकली ही कविता में संजो डाली
बस तब से सुनहरे सपने देख रही हूँ
कविता के पुलिंदे लिए सम्पादक खोज रही हूँ
मुझे पूर्ण विश्वास है आप भी पहचानेगे
एक छिपकली का बलिदान यूँ व्यर्थ ना जाने देंगे
यूँ व्यर्थ ना जाने देंगे
मनीषा