Pages

Tuesday, March 4, 2025

उन्हें याद तो आई होगी

 उन्हें याद आई तो होगी, आंख भर आई तो होगी

एक हूक सीने से उठ तो आई होगी।।


कोई ज़िक्र तो मेरा किसी ने छेड़ा  होगा,

एक याद कोने में मुस्कुराई तो होगी।

उन्हें याद आई तो होगी, आंख भर आई तो होगी।।


पीछे मुड़ कर अचानक देखा तो होगा, 

किसी ने  पुकारा लगा तो होगा 

उन्हें याद आई तो होगी, आंख भर आई तो होगी।।


ढलते सूरज वाली सुनहरी वो शाम याद आई तो होगी,

जगजीत की वही  ग़ज़ल, चुपके चुपके फिर गुनगुनाई तो होगी।

उन्हें याद आई तो होगी, आंख भर आई तो होगी।।


शांत शीतल रातों में, चांदनी की नर्म बाहों में  

अनकही वो बात, मन ही मन दोहराई तो होगी।

 

ले कर बैठे होंगे पुराने किस्से जब जब बचपन के 

दिल से दिल की  बात निकल आई तो होगी ।।


उन्हें याद तो आई होगी, आंख भर आई तो होगी

एक हूक सीने से उठ तो आई होगी।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ्तगू

Monday, March 3, 2025

तेरे पास जो मेरे लम्हे हैं उन्हें सम्भाल कर रखना

 तेरे पास जो मेरे लम्हे हैं उन्हें सम्भाल कर रखना 

तेरी तन्हाइयों में तेरा दिल बहलाएँगे 

जब ज़िंदगी  में तेरे अपने साथ होंगे, महफिल होगी जाम होंगे  

तब दिल के किसी कोने में तेरे हम भी मुस्कुराएंगे ।।

मनीषा वर्मा 

#गुफ्तगू 

तुमने बंद कर दिए तुम तक आने के सब रास्ते

 तुमने बंद कर दिए 

तुम तक आने के सब रास्ते

अब किस हवाले से 

हक जताते हो।।


मैं कोई पुराना वृक्ष नहीं

आंगन का 

जो प्रस्तुत हो रहूं

हर प्रहार का 

और भीतर ही भीतर 

हर गाड़ी कील का

दंश सहती रहूं

ताकि तुम उनसे बांधी रस्सी पर 

सुखाते रहो अपने दंभ 

और मेरे तने पर कुरेदते रहो

अपने प्यार की परिभाषाएं।।


मीत मेरे मैं क्षण क्षण 

मिलती इस उपेक्षा से 

छलनी हो चुकी हूं।

मेरे पास कोमल स्पंदन महसूस 

करने की सभी संभावनाएं

मिट चुकी हैं।


तुम्हारी क्या अपेक्षा है 

अब मुझे नहीं मालूम

तुम्हारे शाब्दिक तीरों और 

क्रूर कटाक्षों की ग्लानि को

पुनः पुनः सहलाने को 

मैं तैयार नहीं हूं।


बहुत देर हो चुकी मेरे मीत

 इस जीवन संध्या तक

तुम्हारे संग और चलने को अब

मैं तैयार नहीं हूं।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

वसंत का रंग लाल है


इस बार माघ में 

उग आईं हैं 

मानुष पर कंटीली झाड़ियां

जो आस पास चलते हुए 

उनके हमरूपों को 

लहूलुहान किए दे रहीं हैं।।


यह रंगों भरे फाल्गुन में 

ये काला विभीत्स रंग कौन

मिला गया 

गुलाल नहीं बस 

आस पास ढेर है राख का 

और पसरी हुई है हवा में 

शवों की गंध


सुना है सुदूर एक देश ने दूसरे देश 

के सभी बच्चों को 

मौत के घाट उतार दिया है 

और जो जीवित हैं 

उन्हें तड़प तड़प कर भूखा 

प्यासा मरने को विवश कर दिया है।।


माएं मार दी गई हैं 

और पिता सूली पर लटका दिए गए हैं

दोषी निर्दोषी सब मिथ्या विवाद में 

सामूहिक रूप से 

दफना दिए गए हैं ।।


घृणा के बीज अब फल चुके हैं

आदमी और जानवर में फ़र्क

बस इतना ही बचा कि 

जानवर अभी भी कंटीले तारों के 

पार जा सकते हैं

दाना पानी खोजने।।


मिथक बन चुकी हैं

न्याय की गुहारें

कौन किसके साथ है 

किसने किया पहला प्रहार ?

क्या सही और क्या गलत है

क्या फ़र्क पड़ता है?


रक्त पी चुकी है इतना ये धरती

कि देखो

इस बार वसंत का रंग लाल है।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू