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Saturday, March 19, 2022

जी हुजूर

 लहज़े में आपके नमक थोड़ा ज़्यादा है 

जुबां पर थोड़ी मिठास रखिए हुजूर।


दुनिया जो झुक के सलाम करने लगे

तो ज़रूरी है मिजाज़ अपना नरम रखिए हुजूर।


बाज़ार लगा चुका है कीमत सबकी

ईमान खरीदने के लिए जेब में दाम रखिए हुजुर।


चलाने को काम मिल तो जाते हैं मजूर

हुनर  आंकने के लिए पारखी नज़र रखिए हुजूर।


लिख तो देते हैं आप उनकी शान में कसीदे 

ज़रा अदब से  घर के बुजुर्गों को साथ  रखिए हुजूर।


लगा तो रहे हैं तोहमते ज़माने भर में 

रिश्तों को निभाने का कोई कायदा तो रखिए हुजूर।


आसमां में उड़ना अच्छा है परिंदों की मानिंद

मगर अच्छा हो कि ज़मी के लोगों से भी वास्ता रखिए हुजूर।


वादा तो कर रहे हैं मोहब्ब्त में ताजमहल बनाने का

सिर छुपाने  के लिए एक अदद मकां तो रखिए हुजूर।


लाए थे बड़े शौक से  हाथी पर ब्याह कर मुझे 

अब बुहारने को घर एक कामवाली तो रखिए हुजूर।


उम्र पैंसठ की हो चुकी है अब जनाब आपकी

इतराने को ना  बाल ये काले  रखिए हुजुर।


बुरा जो मानिएगा आप होली पर दिल्लगी का इतना 

हाथ से  गुजिया तो  तुनक कर प्लेट पर वापिस रखिए हुजूर।


बुला तो लिया है मुशायरे में  मुझे सुनने को ग़ज़ल

अब हाथ पर  मेरे कुछ मेहनताना तो रखिए हुजूर।


कुर्सी ना निकल जाए कहीं फिर हाथ से 

कांख में दबा कर विपक्ष का एक आध घोटाला रखिए हुजूर ।



और बहुत पड़ेंगे जूते अगर कहा कोई और मिसरा 

यहां से चुपचाप निकलने का कोई रास्ता रखिए हुजूर।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

Friday, March 4, 2022

लाज़मी तो नहीं

 उन्हे भी ख्याल हो तुम्हारा लाज़मी तो नहीं

इश्क मे ये जुनूं उन्हे भी हो लाज़मी तो नहीं


तुम तो बैठे हो हो कर दुनिया से बेज़ार 

वो आ कर पूछ ही लें खैरियत लाज़मी तो नहीं


तुम ने तो कर लिया अज़ीम यूं जान का सौदा

ये गैरत उनमें भी हो लाज़मी तो नहीं


ख्वाब में जिनके लुटाए जाते हो दुनिया

करे वो भी तेरी आरज़ू लाज़मी तो नहीं


जाते हो जिनके दर लिए पैगाम ए दोस्ती

कर लें वो भी बातचीत से मसला हल लाज़मी तो नहीं


#गुफ्तगू


मनीषा वर्मा

भूल गए

 बड़ी बड़ी बातों में 

छोटे छोटे किस्से भूल गए


कुछ कथा कहानियाँ ऐसी थीं

जिनको लिखने बैठे तो

हम अपना पराया भूल गए 


बीते कल की  कुछ परछाइयों में 

और आते कल की उम्मीदों में

हम आज की खुशियाँ भूल गए 


जीने मरने की कसमों में 

चाँद तारों के वादों में

हम मोहब्बत की रस्में भूल गए 


खोने पाने की आरज़ू में 

जीने मरने की कशमकश में 

हम कदमों की थिरकन भूल गए


#गुफ्तगू

मनीषा वर्मा

माँ

माँ ओढ़ लेती है धूप बारिश
और कर देती है  छाया 
पथरीली धरती और तुम्हारे बीच
रख देती है मृदुल नर्म गोद
जो माँ होती है बस माँ होती है
कभी मौसी कभी भाभी में होती है 
कभी बुआ कभी चाची बन जाती है
कभी बहन कभी बेटी हो जाती है
पर होती है  भीतर से बस माँ

#गुफ्तगू
मनीषा वर्मा



एक खत

 एक ख़त लिखूँ 

उसके नाम 

जो कभी पढ़ता  नहीं 

मेरे मन की बात

उसके लिए लिख रखूँ 

मैं हर वो बात 

जो वो सुनता नहीं 

लिख डालूँ हर वो 

बात बेबात 

मेरे दिन और रात 

जीवन की कदम ताल 

सांसों  की बारात 

एक एक पल की बात 

लिखूँ  उस चाँद की बात 

देखता है जो हमे 

अलग अलग 

हर रात 

लिखूं कैसे उस बिन 

आई रोज़ सुबह 

और कैसे हर घड़ी आई

 मुझे उसकी याद 

लिख दूँ उसे सब 

दिळ  की बात 

कैसे गुज़रे उसके  बिन 

ये दिन और साल 

जो सुनता नही 

अब मेरे क़दमों की थाप 


मनीषा वर्मा

#गुफ़्तगू