मोहब्ब्त जब रूह को छू जाए ,
काफिर दिल भी खुदा की बंदगी में झुक जाए
तेरे पास जो मेरे लम्हे हैं उन्हें सम्भाल कर रखना
तेरी तन्हाइयों में तेरा दिल बहलाएँगे
जब ज़िंदगी में तेरे अपने साथ होंगे, महफिल होगी जाम होंगे
तब दिल के किसी कोने में तेरे हम भी मुस्कुराएंगे
उससे मिल कर जो फिर जुदा हुई
कुछ तो दर तक अपने पहुंची
कुछ वहीं छोड़ आई
आ कर देखा खाली मकां अपना तो याद आया
खुद को उसी के पास भूल आई
ज़ुबां खामोश रहती है दिल से दिल की बात होती है
आँखें कह देती है उनसे अपने दिल का हर हाल
उनके दीदार की ज़रुरत ही महसूस नही होती
हर शह में बस जाती है जब तस्वीर -ए -यार