मैं नहीं सोचती तुम्हें,
मन कांप जाता है,सोच कर ,
कैसे! हवा सा एक व्यक्तित्व
गुम हो गया देखते ही देखते।
अभी थे,अब नहीं हो
कहीं नहीं हो, धरा से आकाश तक
तुम्हें पुकार लें , खोज लें
तुम.... नहीं लौटोगे।
तुम्हे एक बार छूने , महसूस करने
और सुनने की चाह लिए
जीवन रीत जाएगा,
लेकिन तुम नहीं आओगे।
इसलिए तुम्हें नहीं सोचती
लेकिन तुम हावी रहते हो,
और किसी ज़िद्दी सूर्य किरण से
आ बैठते हो मन के अंधेरे कोनों में
और चमकते दर्पण से,
मिला देते हो मुझे मेरी विगत स्मृतियों से।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू