एक किरण रौशनी की
भटक कर भीतर आ गई थी
मैंने सांकल तो कस के लगाई थी
फिर भी बिना आहट
वो चुपचाप चली आई थी
हल्के से मुझे छू के बोली
तू मुस्कुरा मैं तेरे लिए आई हूँ
तेरे आंसू आसमाँ ने गिने है
और कुछ तेरे लिए मोती चुने हैं
लेकिन पराया था वो अहसास
मेरे भीतर तो सिर्फ तन्हा पन्ने रखे थे
उसके उजास से डर गई मैं
इतनी अजनबी थी ख़ुशी कि
इक पल के लिए मर कर जी उठी मैं
फिर मैंने उसे धीरे से बाहर धकेला
उसकी यादों को एक एक कर उधेड़ा
और
अपने अंधेरो में फिर मस्त हो गई मैं
मनीषा
भटक कर भीतर आ गई थी
मैंने सांकल तो कस के लगाई थी
फिर भी बिना आहट
वो चुपचाप चली आई थी
हल्के से मुझे छू के बोली
तू मुस्कुरा मैं तेरे लिए आई हूँ
तेरे आंसू आसमाँ ने गिने है
और कुछ तेरे लिए मोती चुने हैं
लेकिन पराया था वो अहसास
मेरे भीतर तो सिर्फ तन्हा पन्ने रखे थे
उसके उजास से डर गई मैं
इतनी अजनबी थी ख़ुशी कि
इक पल के लिए मर कर जी उठी मैं
फिर मैंने उसे धीरे से बाहर धकेला
उसकी यादों को एक एक कर उधेड़ा
और
अपने अंधेरो में फिर मस्त हो गई मैं
मनीषा
No comments:
Post a Comment