रिश्ते कुछ अजीब होते हैं
जहां है वहाँ कभी नहीं मिलते
और कभी अचानक यूँही मिल जाते हैं
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
कभी कुछ दूर के होते हैं
तो कभी नज़दीकियों के
कभी अनुभवी से होते हैं
कभी नादान से होते हैं
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
जन्मो से गहरे पल में जुड़ जाते हैं
कभी तार तर हो क्षण में टूट जाते हैं
कुछ बिखरे से होते हैं
कुछ गहरे से होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
बेतक्क्लुफ़ से बेपरवाह से होते हैं
तो कभी मजबूरी में निभाह होते हैं
मुस्कुराते हैं एकांत में
चुभ जाते हैं महफिलों में
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
कुछ मीठे से कुछ तीखे से
अपने से, अजनबी से
शरारती से, गंभीर से
कड़वे से, खट्ट मीठे से
चटपटे लच्छेदार होते हैं
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
मन पे बंधे बंदनवार से
हथेली पे रची मेहँदी से
सावन के त्यौहार से
जीवन की खरी कमाई होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
मनीषा वर्मा