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Monday, March 4, 2013

एक ख़त लिखूँ

एक ख़त लिखूँ 
उसके नाम 
जो कभी पढ़ता  नहीं 
मेरे मन की बात
उसके लिए लिख रखूँ 
मैं हर वो बात 
जो वो सुनता नहीं 
लिख डालूँ हर वो 
बात बेबात 
मेरे दिन और रात 
जीवन की कदम ताल 
सांसों  की बारात 
एक एक पल की बात 
लिखूँ  उस चाँद की बात 
देखता है जो हमे 
अलग अलग 
हर रात 
लिखूं कैसे उस बिन 
आई रोज़ सुबह 
और कैसे हर घड़ी आई
 मुझे उसकी याद 
लिख दूँ उसे सब 
दिळ  की बात 
कैसे गुज़रे उसके  बिन 
ये दिन और साल 
जो सुनता नही 
अब मेरे क़दमों की थाप 
मनीषा