मेरे भीतर एक स्याह रात पलती है
तू अपनी दस्तकों से इसमें उजाले न भर
मुझे इन वीरानियों की एक आदत सी है
तू अपनी बगिया के इसमें फूल मत भर
मैं रोज़ सूरज सी उगती हूँ ,मरती हूँ कभी
तू मेरे लिए अपनी आँख के कोरे नम मत कर
सपने सा है तेरा आना मेरी दुनिया में
प्यार करता है तो कर पर इज़हार ना कर
तू अपनी दस्तकों से इसमें उजाले न भर
मुझे इन वीरानियों की एक आदत सी है
तू अपनी बगिया के इसमें फूल मत भर
मैं रोज़ सूरज सी उगती हूँ ,मरती हूँ कभी
तू मेरे लिए अपनी आँख के कोरे नम मत कर
सपने सा है तेरा आना मेरी दुनिया में
प्यार करता है तो कर पर इज़हार ना कर
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