शर्म शायद मर गई
उन्हें नहीं किया नंगा
खुद हुए तुम नंगे
वे तो ढक लेंगी तन को
मन के घाव भी सह लेंगी
पर तुम? तुम कैसे देखोगे खुद को
अपने भीतर के उस अट्टहास
लगाते दुशासन को
जो तुम में समा गया है
और डराता है तुम्हारे आस पास
रहती मां बहन और बेटियों को
जानती हूं कृष्ण अब नहीं आते
ना कोई जागता है भीम किसी के भीतर
इसलिए तुम्हें तो जीना ही होगा
अपने इस पिशाच रूप में
तुमने लिया है ना जन्म इस राम की धरती पर
तो यही दंड है तुम्हारा
तुम्हारे आस पास रहने वाली
कोई स्त्री कभी महफूज़ नहीं रहेगी
सदियों तक विलाप गूंजेगा इस ब्रह्मवृत भूमि पर
और द्रौपदी की तरह हर स्त्री ढोएगी
इल्जाम अपने हास्य का , तंज सिर उठाने का
और संकोच जन्म का।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू