तुम अपनी आशा
अपना विश्वास , अपनी उमंग सहेज लो
मुझे केंद्र नहीं बनना है
तुम्हारे उच्छाह का
अपने दायरों में मैं सुखी नहीं यह कब कहा था मैंने तुमसे
जो तुम मेरे चारों ओर
उग आई इन कंटीली झाड़ियो पर
फूल खिलाने लगे
तुम्हारे उत्साह की सुनहली धूप में मुझे
अपेक्षाओं की जलन महसूस होती है
तुम्हारे उमंग के क्षितिज पर तुम्हारी ही
इच्छाओं की इन्द्रधनुषी परछाईयाँ नज़र आती हैं
जो अपने मिथकों की लपलपाती जिव्हा लिए
मेरे स्वछंद आकाश को लीलने के लिए आतुर हैं
पर
मुझे केंद्र नहीं बनना है तुम्हारे अटूट भोले विश्वास का
नहीं चाहती हूँ की तुम
मेरी नीव पर अपना शीशमहल खड़ा करो
अपेक्षाओं की कसौटी पर खरोंच लग ही जाती है रिश्तों को
अपने अलंकृत जीवनमे
मुझे संवार कर मूर्तिवत किस कोने में खड़ा करोगे
नहीं तुलना है मुझे तुम्हारी
अतृप्त आकांक्षाओं के बाट से
इसलिए तुम अपनी आशाओं
अपनी उमंगो और विश्वासों की पोटली बाँध लो
और सिरा दो उसे
किसी और सुनहली सरिता में