मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Sunday, December 22, 2013
मैं
मैं बार बार लहरों सी तेरे तट
से लौट जाती हूँ
सागर में हूँ समाहित
फिर भी प्यासी रह जाती हूँ
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