बहुत दिन हुए तुम्हारा नाम लिखे कोरे पन्नों पर
कभी तरस जाती थीं कलम पकड़े उँगलियाँ
नाम को तुम्हारे गीली स्याही में
और कभी कॉपी के पन्नों के पीछे
किताबों के कोनों पर अक्षरों में
उतर आता जो
झटपट स्याही ढाँप देती थी मानों
आंचल से ढाँप दिया हो तुम्हारा चेहरा
पर फिर भी तुम्हारे नाम के तीन आखर
झाँकते मुस्कुराते थे मेरे गालों पर उतरी लालिमा में
और हार कर कंपकंपाती उँगलियाँ
सहेज कर धीरे से वह पन्ना फाड़ देतीं थीं
जिस पर उतर गया था अनजाने में तुम्हारा नाम
और दुहराते उस नाम को वहीं अधरों पर भींच लेती थी
और कदम, छिटक कर खुद ही चल देते थे
तुम्हारे ही ख्यालों में दूर कही
मनीषा
कभी तरस जाती थीं कलम पकड़े उँगलियाँ
नाम को तुम्हारे गीली स्याही में
और कभी कॉपी के पन्नों के पीछे
किताबों के कोनों पर अक्षरों में
उतर आता जो
झटपट स्याही ढाँप देती थी मानों
आंचल से ढाँप दिया हो तुम्हारा चेहरा
पर फिर भी तुम्हारे नाम के तीन आखर
झाँकते मुस्कुराते थे मेरे गालों पर उतरी लालिमा में
और हार कर कंपकंपाती उँगलियाँ
सहेज कर धीरे से वह पन्ना फाड़ देतीं थीं
जिस पर उतर गया था अनजाने में तुम्हारा नाम
और दुहराते उस नाम को वहीं अधरों पर भींच लेती थी
और कदम, छिटक कर खुद ही चल देते थे
तुम्हारे ही ख्यालों में दूर कही
मनीषा
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