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Wednesday, January 8, 2014

परिचय

मैं परिचितों के मध्य अपरिचित सी
वे  परिचित थे मुझसे और मैं अपरिचित
परिचय  वितरित हो रहे थे
कुछ मैंने भी बटोरे और कुछ बाँट दिए
काल चक्र के पहिए में
धीरे धीरे पिस  गए सभी परिचय
अब मैं परिचित थी उनसे
और वे मुझसे अपरिचित
अपरिचितों के मध्य एक
 तटस्थ शून्य बिंदु मात्र
सब चलता रहा यथावत
परिचय अपरिचय ,
मिलन बिछोह का खेल
कभी धुधंलता रहा
 कभी साफ़ होता रहा
अब मैं थी और परिचय
अनुभवों का संचय
स्मृतियों के पुलिंदे
पन्नों पर उतरते-अक्षर मात्र
गर्त सी उड़ती रही
हर बटोही से परिचय पूछती रही
अपना पता खोजती  रही

मनीषा



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