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Sunday, August 17, 2014

अब कोई घर बुलाता नहीं

रात भर रौनकें लगाता नहीं
अब कोई घर बुलाता नहीं
सूना बीत जाता है त्यौहार
अब कोई इधर आता नही
सिमट जाती है आँगन में उतरी धूप
कोई सांकल खटखटाता नही
बीत जाते हैं दिन महीने साल
अब कोई प्यार से पुकारता नही

सिमट कर रह गए घड़ी के काँटों 

में सब व्यवहार 
अब कोई साथ वक़्त  बिताता  नहीं
दिलों में उतर चुके जाने कितने मलाल
अपनों को देख अब कोई मुस्काता नही
मनीषा

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