मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Wednesday, August 20, 2014
एक शाम उदास ढल जाती
यूँ ही दिन गुज़र जाता है
कभी बात करते नहीं
कभी बात हो नही पाती
एक शाम उदास ढल जाती
मनीषा
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