Pages

Sunday, December 22, 2013

मेरे लिए सजन तुम आए ही कब पास मेरे

मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे
शून्य ही तो था हमारे मध्य
और शून्य के दायरों में ही विलीन हो चला है
हमारा संबंध
तुम आए ही कब रिश्तों के धागे जोड़ने
मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे

फिर  न जाने कितने पल हमारे मध्य
इस अंतराल में जुड़ते चले गए
और हम-मैं और तुम में बदलते रहे
तुम आए ही कब सजन
अपने मैं को मेरे मैं से जोड़ने
मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे

अंतहीन प्रतीक्षाओं के उपरांत भी
रीता  ही रह जाना था पथ
पथ -धूलि से केवल कैसे भरती  यह झोली
रिक्त ही रह जानी थी मेरी मांग
मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे

यह जान कर  भी सजन मेरे
मैंने की थी प्रतीक्षा , बाँधा था स्वयं  को तुमसे
और तुम्हारी नि:संगतता को चाहा था
मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे
मझे सहेजने सजन मेरे
मुझे समझने सजन मेरे
मेरे लिए सजन तुम आए  ही कब पास मेरे

by me मनीषा 

2 comments:

  1. कहने को तो थे तुम आस पास मेरे
    चलते भी रहे साथ साथ मेरे
    मेरे अहसासो सी अनभिज्ञ
    मेरी चाहतो से परे
    हम-तुम और तुम हम के
    बीच
    मेरे लिए सजन तुम आए ही कब पास मेरे

    हम बढ़ते रहे नदी के दो किनारो कि तरह
    संग संग मजबूत इरादो कि तरह
    भीतर कही सुलगती रही इक आस
    तुम वह भी सुनोगे जो मैंने न कहा
    पर सजन
    मेरे लिए सजन तुम आए ही कब पास मेरे

    ReplyDelete
  2. Superbly written thanks for commenting

    ReplyDelete