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Sunday, July 31, 2016

देखने के आयाम अलग हैं

देखने के आयाम अलग हैं
बातचीत सब व्यवहार अलग हैं
मन कैसे रमाए धूनी
चाकी के दो पाट अलग हैं

दिशा उत्तर है या दक्खिन
आसमां को कहाँ मालूम
ये तो जंमीं से देखने वालों के
मिज़ाज़ अलग हैं

सागर अपना लेता है
हर बहती धारा को
उसे क्या मालूम उसमे उतरने वाले
दरिया अलग हैं 

बात तो कुछ नई नहीं
जो चेहरे की रंगत उतर जाए
सुना है अब उनके कहने के
कुछ अंदाज़ अलग हैं

मैं अब भी मुजरिम हूँ
उसकी बुलाई हर अदालत में
बस अब मुझ पर लगाए
इल्ज़ामात अलग हैं

वो मेरी रुसवाई पर
खुश हो सकता है 
मगर मेरे जीने के मरने के
सब अंदाज़ अलग हैं

मेरे कातिल ने ज़ाया किए
यूँही तमाम खँजर
मुझे चुभ जाऐं ऐसे
वो नश्तर ही अलग हैं

हम भी मिल जाते
अपने नसीब से
मगर हमपर  जो गुज़र गए
वो तूफ़ान  अलग हैं

दौर -ए- मुश्किल गुज़रा 
कुछ उन पर कुछ हम पर भी
बस अपने अपने 
मुस्कुराने के अंदाज़ अलग हैं

मनीषा

Thursday, July 28, 2016

एक मुलाकात ज़रूरी है

तुझसे बिछङने के लिए एक मुलाकात ज़रूरी है
तुझे भूल जाने के लिए एक उम्र अधूरी है

मंज़िल तक पहुँचे कदम ऐसा एक सफर ज़रूरी है
राहे गुज़र पर हर कदम हमसफ़र ज़रूरी है

पथरीली इन राहों पर तेरी छांव ज़रूरी है
जीने के लिए इन आँखों में एक ख्वाब ज़रूरी है

ऐसा तो नहीं इश्क मे हर दौर कुछ रंजिशें ज़रूरी हैं
मुझे सुनने के लिए तेरी खामोशियाँ भी ज़रूरी हैं

तेरा ज़िक्र आए तो मेरा अनजान बन जाना ज़रूरी है
इश्क के दामन से ये दाग बचाना भी ज़रूरी है

महफिल महफिल मुस्काना भी ज़रूरी है
दुनिया के कुछ दस्तूर निभाना भी ज़रूरी है

मनीषा

Wednesday, July 27, 2016

हवा के झोंके सा

हवा के झोंके सा वो आया 
और मुझे छु कर गुजर गया
मै उसके अहसास की ओस मे 
भीगती रही देर तलक

उसकी बातें उसकी मुस्कान
तैरती रही देर तक घर में
हर पल मे जैसे गुंथ गया
उसके होने का बस एक वो पल
 उसका चेहरा छप  सा गया 
मेरे तकिए की गोद  में 
और सिमटी चादर की सलवटों से 
अब भी उठ रही है उसकी  महक 

वो जा कर  भी मेरे दर से 
जा नहीं पाया अब तलक 
मनीषा