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Thursday, August 16, 2018

दीप था बुझ गया आभ छोड़ गया

दीप था बुझ गया आभ छोड़ गया
पलकों पर ख्वाब छोड़ गया
दीप था आभ छोड़ गया

कर प्रकाशित पथ राह छोड़ गया
हाथों में मशाल छोड़ गया
दीप था आभ छोड़ गया

कर पराजित तिमिर 'अटल' आलोक छोड़ गया
अवरूद्ध कंठ में राग छोड़ गया
दीप था आभ छोड़ गया

रिक्त पन्नों पर  क्रान्ति का आह्वान  छोड़ गया
तरुण हृदय में झनकार छोड़ गया
दीप था आभ छोड़ गया

16.08.2018
मनीषा वर्मा

Saturday, May 26, 2018

आया नेता माँगने वोट

ले कर सौ सौ के करारे नोट
आया नेता माँगने वोट

समझ ना पाया उसका खोट
मैंने दे दिया अपना वोट

नेता ने कर ली साठ गाँठ
सत्ता की हो गई बन्दर बाँट

नेता मार गया मेरी पॉकेट
चुनाव चुनाव का कर गया नाटक

खूब करी फिर नेता ने सीना जोरी
लूटी मिल बैठ कर सरकारी तिजोरी

देता रहा गणतंत्र दुहाई
नेता ने खाई खूब मलाई

पकड़ के उसको भेजा जेल
चट पट उसको मिल गई बेल

जनता में डाल कर फूट
नेता गया जेल से छूट

घर घर जन जन में दंगल हुआ
नेताजी के आँगन मंगल हुआ

गिना कर विकास का बही खाता
नेता जोड़ गया फिर उम्मीद से नाता

ले कर सौ सौ के करारे नोट
फिर आया नेता मांगने वोट

#गुफ़्तगू
मनीषा वर्मा

Tuesday, April 17, 2018

लाज़मी तो नहीं

उन्हे भी ख्याल हो तुम्हारा लाज़मी तो नहीं
इश्क मे ये जुनूं उन्हे भी हो लाज़मी तो नहीं

तुम तो बैठे हो हो कर  दुनिया से बेज़ार
वो आ कर पूछ ही लें खैरियत लाज़मी तो नहीं

तुम ने तो कर लिया अज़ीम यूं जान का सौदा
ये  गैरत उनमें भी हो लाज़मी तो नहीं

ख्वाब में जिनके लुटाए जाते हो दुनिया
करे वो भी तेरी आरज़ू लाज़मी तो नहीं

जाते हो जिनके दर लिए पैगाम ए दोस्ती
कर लें वो भी बातचीत से मसला हल लाज़मी तो नहीं

#गुफ्तगू

मनीषा वर्मा

Friday, April 13, 2018

जो सियासतदार थे

जो सियासतदार थे सियासत खेल गए
जिन्हें कानून बनाने थे वो मोमबत्तियां ले कर बैठ गए

धर्म के दावेदार हठधर्म ले कर टूट पड़े
जो कानूनदार थे वो पट्टी बांध इंसाफ तोल गए

जिन हाथों में बांधी थी राखियां वो गरेबाँ तक पहुंच गए
किससे करें शिकायत हाकिम ही जब अस्मत लूट गए

सभ्य समाज के सब ठेकेदार धृतराष्ट्र बन कर बैठ गए
ना आए अब कृष्ण बचाने लाज वो भी मूरत बन बैठ गए

मनीषा वर्मा

Tuesday, February 6, 2018

सब हैं बस एक तुम नहीं हो

सब हैं बस एक तुम नहीं हो
रात के पहलू में जैसे चाँद नहीं हो
दरख्तों तले जैसे छाँव नहीं हो
बादलों में जैसे बरसात नहीं हो
सब हैं बस एक तुम ही नहीं हो

#गुफ्तगू
मनीषा वर्मा

Thursday, January 18, 2018

दिन जब लम्बे थे

दिन जब लम्बे थे और रातें छोटी
घड़ी के कांटों से बंधे हम ना थे

रात रात तक कहानी किस्से थे
इतने तन्हा तो हम ना थे

दिन की गलियाँ फिरते थे आवारा
दिल से इतने खाली तो हम ना थे

आंखो में उड़ाने थी कदमों में थिरकन थी
राह की उलझनों से वाकिफ तो हम ना थे

पतंगों के पेच थे चकरी और माँजे पर लड़ते थे
रिश्तों के इन पेचीदा भँवरों में उलझे तो हम ना थे



मनीषा वर्मा 

Tuesday, January 16, 2018

लेखनी तुम लिखती रहना

लेखनी तुम लिखती रहना
मन की आवाज़ को शब्दों में रचती रहना
शमशीर तले अपमान शीश धरे
तुम चलती रहना
जब तलक प्राण स्याही रहे
शारदा चरणों में पुष्प अर्पित करती रहना
लेखनी तुम लिखती रहना

बाल मुस्कान विधी का विधान
माँ का आशीष बूढ़ी आँखो का दीप
हरि की लीला हृदय की पीड़ा
तुम गाती रहना
जब तलक नोक में धार रहे
जगती का लेखा तुम अंकित करती रहना
लेखनी तुम लिखती रहना

#गुफ्तगू
मनीषा

Saturday, January 6, 2018

एक ग़ज़ल

कभी एक ग़ज़ल भी बयां नहीं करती मुझे
कभी एक मिसरे में उतर जाता हूँ मैं

वैसे तो एक बंद दरवाज़ा हूँ मैं
तेरी एक दस्तक पर भीतर तक खुल जाता हूँ मैं

नाउम्मीदगी से डगमगायी जब भी कश्ती मेरी
तेरे आसरे पर पार उतर जाता हूँ मैं

बढ़ता हूँ जो चार कदम अपनी मंजिलों की तरफ
उसकी गलियों में अक्सर भटक जाता हूँ मैं

ढूँढता फिरा जिस हमनवाज़ को दर बदर
उस  को अपने ही अक्स में पा जाता हूँ मैं

मांगने जाता हूँ दुआ जो खुदा के दर तक
अपने ही अंदर उतर जाता हूँ मैं

यूँ तो कर लिया था दिल सफ़्फ़ाक मैने
फिर भी उसकी सादगी पर पिघल जाता हूँ मैं

यूँ तो मशहूर हैं ज़माने में मेरी आश्नाई के किस्से
मगर अपनों से निबाहने में अक्सर चूक जाता हूँ मैं

मनीषा वर्मा