जाऊँगी दूर कहीं लौट कभी क्या पाऊँगी
चाहो तो पास तुम्हारेएक ख्वाब सी रह जाऊँगी
ढूंढोगे तुम कभी और पुकारोगे मुझे तब
इन तारों भरे अम्बर में इक तारा बन छिप जाऊँगी
किसी दिन इक झोंके सी
हवा में महक सी छिप तुम्हें छू जाऊँगी
कहीं बैठ जब ऊषा सुनहरे केश लहराएगी
सूरज की लाली बन तुम्हारे मृदु अधरों पर छा जाऊँगी
बैठे होगे जब एकाकी तुम इक साँझ किसी झूले पर
छज्जे पर गाती चिड़िया के स्वर में सुर मिलाऊँगी
जब जगती में जीवन संचरित होगा
तुम्हारे मन के भावों में कल्पना सी लहराऊँगी
तुम्हारे कमरे की खिड़की के सामने
तरु शिखा पर खेलती किरणों सी
तुम्हारी निगाहों में उतर मुस्काऊँगी
ना लौट सकूं कभी इस देह व्यूह चक्र में
तो भी यूँ ही सी इक मृदु स्मृति बन
तुम्हारी आँखों के गीले कोरो में मुस्काऊँगी मैं
मनीषा
चाहो तो पास तुम्हारेएक ख्वाब सी रह जाऊँगी
ढूंढोगे तुम कभी और पुकारोगे मुझे तब
इन तारों भरे अम्बर में इक तारा बन छिप जाऊँगी
किसी दिन इक झोंके सी
हवा में महक सी छिप तुम्हें छू जाऊँगी
कहीं बैठ जब ऊषा सुनहरे केश लहराएगी
सूरज की लाली बन तुम्हारे मृदु अधरों पर छा जाऊँगी
बैठे होगे जब एकाकी तुम इक साँझ किसी झूले पर
छज्जे पर गाती चिड़िया के स्वर में सुर मिलाऊँगी
जब जगती में जीवन संचरित होगा
तुम्हारे मन के भावों में कल्पना सी लहराऊँगी
तुम्हारे कमरे की खिड़की के सामने
तरु शिखा पर खेलती किरणों सी
तुम्हारी निगाहों में उतर मुस्काऊँगी
ना लौट सकूं कभी इस देह व्यूह चक्र में
तो भी यूँ ही सी इक मृदु स्मृति बन
तुम्हारी आँखों के गीले कोरो में मुस्काऊँगी मैं
मनीषा
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