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Monday, February 28, 2022

कुछ बीत गया

 कुछ बीत  गया ? समय था 

कुछ टूट गया ? एक भ्रम था शायद 

कुछ छूट गया? अब भूल जा 


पर दुःख ये कैसा, पूछा मैंने ?

अंतर मन को खूब टटोला मैंने


पल ये तो बीत ही जाना है

भ्रम हो या स्वप्न टूट ही जाना है 

रहगुज़र हो या साथ 

पीछे छूट ही जाना है 

फिर ये दुःख कैसा ?

ये वेदना ये क्रंदन कैसा


पर  हृदय  निरुत्तर था 

मौन था

विषाद बस असहनीय था


मनीषा वर्मा


#गुफ़्तगू



Saturday, February 26, 2022

अजब तेरा खेला

 अजब  तेरा खेला  अजब तेरी दुनिया

सुख दुःख जैसे दिन रात की परछाई


पाप है क्या और ये पुन्य है क्या

कह गए ज्ञानी सब करम  कमाई


कोई यहाँ  जी ना पाया, किसी को मांगे मौत ना आई

दे गए ज्ञानी सब भरम दुहाई 


कैसा खेल तुम खेले केशव, मानव मन में पीर छिपाई

कह गए ज्ञानी सब मिथ्या माया रचाई 


#गुफ्तगू


मनीषा वर्मा

Saturday, February 12, 2022

आधा हिस्सा

 हां आओ बारिश का पानी बांट लें

आसमां से जो बरसे तुम रखना

आंखों से तुम्हारी जो ढुलके 

मैं रख लेती हूं

आओ बारिश का पानी बांट लें


आओ ये धूप बांट लें

सर्दियों की मीठी वाली तुम रखना

रास्तों की कङी तीखी मैं रख लेती हूं

आओ  ये धूप बांट लें


आओ ये शरद चांदनी बांट लें

श्वेत धवल तुम रखना

तन्हा उदास क्षुब्ध सी

मैं रख लेती हूं

आओ ये शरद चांदनी बांट लें


आओ दिन और रात बांट लें

रात पर जब दिन उतरता हो तुम रखना

दिन में जब रात घुलती हो

मैं रख लेती हूं

आओ दिन और रात बांट लें


आओ ये अपनी ज़िंदगी बांट लें

दुनियावी खुशियों वाली तुम रखना

उदास गज़लों की गुफ्तगू

मैं रख लेती हूं

आओ ये अपनी ज़िंदगी  बांट लें


 #गुफ्तगू

मनीषा वर्मा

Thursday, February 10, 2022

फाल्गुन

 फिर आई रात फाल्गुनी

पाँव में मेहँदी रचाए

फिर आई उषा धवल ओस में नहाई 

पुष्प रंजित धरा का श्रृंगार करती 

चलता होगा नभ शिखर पर उन्मत्त

मेरे प्रांगण को नमन करता रवि


और आती होगी वही आज़ान

मस्जिद के उन्नत शिखर से

वहीं गूंजता होगा उस मंदिर से

मृदु घंटियों का आवाह्न

इन सबके बीच लेती होगी

व्यस्त ज़िंदगी अंगड़ाई


याद आती हैं बचपन की वो

मासूम गलियाँ

और छतों पर उड़ती 

पतंगों की अठखेलियां

ढलती उम्र में बेहद याद आती हैं

वो बालापन की मीठी नादानियाँ

#गुफ्तगू


मनीषा वर्मा