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Sunday, December 7, 2014

तेरे पाँव के भंवर

तेरे पाँव के भंवर
तुझे थमने नही देते
मंज़िलों  ने रोका तो तुझे बहुत था
तेरी मोहब्बत के भरम
मुझे किसी का होने नही देते
बड़ी शिद्द्त से चाहा तो मैंने भी बहुत था
मनीषा

तू ढूंढता है

तू ढूंढता है मुझमे ही मुझको
तुझमे समा  के
खुद में बची ही कहाँ  हूँ मैं
मनीषा

Monday, December 1, 2014

तेरी यादों ने

तेरी यादों ने इस तरह बसा रखा है मुझमें इक शहर ।
कहीं भी जाऊं वीरानियाँ नसीब नहीं होती ।।
महफ़िलों में फिरता रहता हूँ अजनबी सा ।
तन्हाइयों में भी तन्हाईयाँ नसीब नहीं होती ।।
मनीषा वर्मा