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Tuesday, July 10, 2012

रचना रचनाकार की निजी सम्पत्ति है

रचना रचनाकार की निजी सम्पत्ति है
नहीं वह द्रविड़ , तमिल या हिन्दू की निधी है
वह स्वर है पीड़ामय  ह्रदय की पुकार का
नही मज़हब कोई विशेष है उसका

रचना रचनाकार की समर्पित नही किसी एक को
वह भेंट है उस एक व्यक्ति की समाज को
रचना सर्वश्रेष्ठ है वही  जिसमे निहित कोई सच्चाई हो
उद्देश्य जिसका समाज के प्रति उत्तरदायी हो
सर तुलसी मीरा या निराला श्रेष्ठ कवि कहलाए थे
वे स्वांत: सुखाय  रचनाओ से भी बहुजन हित  कर पाए थे
रचना मानव मन के भावों की गाथा कहती है
कहीं आक्रोश से कहीं व्यंग से विचारो को गति देती है
रचना केवल पन्नो पर उतरे काले अक्षर नहीं
नर्म-कोमल अनुभूति है
रचना केवल एक कल्पना नहीं
पूर्ण समाज के अंतर की गहराई है
जीवन के भीषण तापों को झेलती
नही वह सिर्फ एक जिंदगी की कहानी है
रचना तो समय चक्र से लड़ते
एक पूर्ण युग की ज़ुबानी है
भावना व शब्दों का आत्मीय मेल है
रचना शब्दों में उतरा जीवन म्रत्यु का खेल है


Sunday, July 1, 2012

क्यों मैं गाऊँ

विश्व तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
मैं कवि क्यों तुझसे बंधने को ललचाऊँ 
तू विलासी मुट्ठी भर जीविका से
क्षण भर को तौल भर देगा मुझे
फिर क्यों अपना जीवन मैं
तुझे समर्पित कर जाऊं
बेमोल ही बिक जाऊं
क्यों तेरे अनुरोध पर कलम उठाऊं
 तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
जिनको तूने पूजा तूने माना
बिसरा बैठा तू उनकी अनमोल कहानी
जिनको तू पूजेगा तू गायेगा 
जीवित रहेगी क्या   उनकी कोई निशानी
फिर क्यों तुझे रिझाऊँ 
रूमानी सा वो गीत फिर दोहराऊँ
तेरे कहने पर क्यों कलम उठाऊँ
 तुझे हँसाने तुझे मनाने को क्यों मैं गाऊँ 
नश्वरता तेरी मैं पहचान पाया 
तेरे स्वार्थ को मैं जान पाया 
तू तो रुका ना सम्राटों की  समिधा पर
न रुका उस एक वस्त्रा फकीर के निस्वार्थ बलिदान पर
फिर तेरी श्रद्धा पाने को मैं क्यों ललचाऊँ
मैं कवि क्यों ह्रदय  जलाऊँ 
तेरे पाश्र्व के सुख को ललचाऊँ 
क्यों फिर कलम उठाऊं