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Friday, December 27, 2013

मन करता है

गुज़र जाते हैं हमारे बीच कितने
अनकहे  दिन अनकही  रातें
कहो कब खत्म होंगी दीवारों से बाते
नयन जब भी पा जाते कुछ ऐसा
जो हर्षित तुमको भी किया करता
मन मचल जाता वहीं कहीं
तुमको पास बुलाने को
कितनी संचित स्मृतियाँ
अतीत के पुलिंदों  में दफन हुईं
कितनी सूनी रातें सपनीली बातें
सिर्फ करवटों में गुज़र गईं
अब एक
लम्बी सुनहली धूप चुराने को मन करता है
थोड़ी चाँदनी  छिटकाने को मन करता है
शाम की इन उदास क्यारियों में
एक नन्हा सुख उगाने को मन करता है
आज संग तुम्हारा पाने को मन करता है

by me मनीषा

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