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Friday, December 27, 2013

टूटन

कच्च  से टूटा है कुछ
पर क्या?
सपना?
सपनों  के टूटने की आवाज़ नहीं  होती
कभी ध्यान से सुनो तो
सुनाई देती है सिर्फ
एक धीमी सी सिसकी
खिलखिलाते होंठों  के बीच दबी
देखो गौर से
तो शायद चमक जाएँ
पलकों के भीतर सूखे आँसू
और जानो तो
उस मस्त चेहरे पर नज़र आ जाएँगी
दर्द की गहरी लकीरें
उस हंसते चेहरे पर खिलते चुटकुलों के बीच
खाली सूनी गहरी आँखे
उसके अंतर का परिचय भी दे जाएँगी
और किसी सपने की ताज़ी लाश
अपना अक्स दिखा देगी
आँखों के नीचे पड़े काले गहरे गड्ढों में

by me मनीषा

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