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Wednesday, June 29, 2011

साया

कोई नही है पास मेरे
बस एक साया ही तो है यहाँ
कही से अब तो आवाज़ दो
मुझे तुम बहुत सन्नाटा है यहाँ
जब तक नही जानती थी
तुम्हारे संग क्या होगी ज़िंदगी मेरी
बहुत आसान थी कटनी हर तन्हा शाम
चल कर संग तुम्हारे दो कदम ही अब
कटती नही है सूनी ये दो घड़ियाँ भी
कही से अब तो आवाज़ दो
मुझे तुम बहुत सन्नाटा है यहाँ

मनीषा

Sunday, June 26, 2011

क्या लिखूं तुम्हे जो छू जाए

क्या लिखूं तुम्हे जो छू जाए
काश ! की प्यार मेरा इस लेखनी मे उतर जाए
धड़कनो की स्याही मे डुबो कर कलम
सोचती हुँ कि क्या लिखूँ जो रंग मेरा इन पन्नो पर उतर जाए
दबा के अधरो को रखती हूँ अक्षरों को
कोरे काग़ज़ पर और जानती भी भी हुँ
की बेईमान ये ना जाने क्या तुम्हे कह जाएँ

अपने शब्दो मे पाती हूँ, झलक
हरी घास पर, छितरे पीले फूलों की
और सोचती हूँ आज कही वही याद पन्नो पर उतर पाए
क्या लिखूं जो तुम्हे छू जाए
काश! की प्यार मेरा, लेखनी मे उतर पाए

वक्त की रेत पर फ़िसलते पाँव

वक्त की रेत पर फ़िसलते पाँव,
ज़मीन तलाशते जल रहे हैं
शायद ये जलन नियती हो

या फ़िर कोई संकेत
कि इस रेत की ढलान पर ही
कहीं मिलेगी ठडी छाँव भी
उस असीम प्रेम की
और भर देगी मेरे जीवन मे भी
तृप्ति की शीतलता

तुम आ कर इसी सफ़र में
उठा लोगे इन कदमों को
अपनी मृदु हथेलियों पर
और कर लोगे मुझे
अपने आप मे समाहित्॥
written on 26-04-1999

Friday, June 24, 2011

मचा है घर मे एक हंगामा

साँसे रुकी हुई, नज़र बेचैन सी
दिल थाम के बैठे है कि
तेरे आने की खबर से
मचा है घर मे एक हंगामा सा॥
अम्मा की आवाज़ से आँगन गूँज रहा है
भाभी की खीर से घर महक रहा है
छोटी बदल रही है सब कवर
पापा ने ली है फ़िर अखबार के पीछे शरण
ये तेरे आने की खबर से
मचा है घर मे एक हंगामा सा॥
धुला पुछा सा आँगन
मानो चह्क उठा है
आज बाहर लगा अमलतास भी
खिल उठा है
हर आह्ट पर अम्मा के हाथ रुक से जाते है
कदम उनके दरवाज़े की ओर बढ़ ही जाते हैं
ये तेरे आने की खबर से
मचा है घर मे एक हंगामा सा॥

घड़ी कि सुईयाँ आज रुक सी गई हैं
रोज़ दो पल मे गुज़र जाने वाली सुबह
आज थम सी गई है
भैया आज ले छुट्टी तुम्हे लिवाने गए है
आज शहर भर के इक्के गुम से गए है
हर टाप पर मेरी आस धक सी गई है
ये तेरे आने की खबर से
मचा है दिल मे मेरे एक हंगामा सा॥

Sunday, June 19, 2011

प्यार

ये दिलों के रिश्ते हैं सदियो तक इनके साए साथ चलते है ,
जन्मो का रिश्ता लम्हो मे नही बिखरा करता,
मिल जाती है अपने ही हाल से तेरी खबर,
मौसम के साथ दिल नही बदला करता।

पदाधिकारी

तुम्हारे ऊँचे पद
बड़े बड़े नाम लिखे डायरियों मे
किस काम मेरे
जो दिला न सके
एक मज़बूत छत
एक चारदीवारी
और एक नौकरी
उसे, जिसे कहते थे
तुम भाभी
नई दुल्हिन
और अब एक बेसहारा अबला
जो जूझ रही है जीवन के समर मे आज
तन्हा, निपट अकेली
अंगुली उठाना आसान है
सरल है व्यवहार की कमी मे झांकना
जब आँचर हो किसी दूसरे का
ये तुम्हारे पदों के लेबल
किस काम उसके जो पोछ ना पाए
आँसू और भर ना पाए मन उसका

Saturday, June 11, 2011

सब के बीच का अकेलापन

सब के बीच का अकेलापन
सालता है
जैसे दरखत कोई नग्न खड़ा हो
खुले आस्मां के नीचे
दूर तक बस वीरानगी है
सूरज भी डर के डूब गया हो जैसे
चकोर चुप है इतना सन्नाटा है
आसमां भूल आया हो अपने सितारे जैसे
आज अकेली खड़ी हूँ
त्रिशंकु की त्रासदी भाँपती मै
इक कमज़ोर सी होती डोर
पर पत्ते सी झूलती मै

Friday, June 10, 2011

मियाँ हुसैन

जिन्होने किसी लकीर को नही माना, ना समाज की रवायतो को जाना
बहुत कम होते है ऐसे यायावर जो अपनी ही शर्तो पर जीते है

ताज़ा खबर

सबसे पहले और सबसे आगे ये सिर्फ़ कागज़ के गुलाम
वही दिखाते है जो बिकता है
दर्द हो या आँसू
खून हो या पसीना
मय्यत का मौसम हो या
शादी का महीना
बस दिखाते है ये ताज़ा खबर
कल आन्दोलन का अवलोकन था
आज बहस है मय्यत की
बस जो बिकता है ये वही बताते है
सिर्फ़ ताज़ा खबर ही दर्शाते है

Tuesday, June 7, 2011

मंथन

मंथन है जनगण का
विष मिला है
अमृत की प्रतिक्षा है्।

Monday, June 6, 2011

सत्ता के गलियारो मे आवाज़ एक सच की गूँजी थी

सत्ता के गलियारो मे
आवाज़ एक सच की गूँजी थी
हर भारतवासी के मन मे
फ़िर से आशा जागी थी
कालाबाज़ारी के खिलाफ़
हर गली मे खिलाफ़त उठी थी
घोटालो मे डूबे हर नेता को
सबक सिखाने की सूझी थी
साथ अन्ना के फ़िर से सच्चाई का परचम लहराने
एक बार फ़िर जनमत ने ठानी थी
हा! धिक्कार तुम्हे जो आज़ाद भारत के नेता हो
अपने मुद्दो मे उलझा कर
तुमने सोती जनता पर अन्धियारे मे वार किया
दिन मे तो आँख ना मिला सके
रात में अत्याचार किया
सच की लड़ाई को पह्चान न सके
कभी बाबा कभी सिब्ब्ल कभी माया बन
अनाचार किया
फ़िर ये परचम लहराएगा
आज तुम्हारा है
कल जनता का भी दिन आएगा
जिन हाथों ने आज तुम्हे सिंहासन है दिया
उन्ही हाथों मे चक्र सुदर्शन भी लहराएगा
आज मूक खड़ी जो तमाशा देख रही है
वो जनता हारी है न समझना
ये भी न समझना कि
जनता सिर्फ़ भोली भाली है
मूल मुद्दे को भुला नही देगी ये
उस दिन बता देगी ये ,जिस दिन जनमत आएगा