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Thursday, August 8, 2013

सियासत

वो सियासत करते रहे 
घर के खंडहर सुलगते रहे
खींच तान कुर्सी की चलती रही 
लाशों के पाए गढ़ते रहे 
चूड़ियाँ कुंवारी कन्याओं की 
नेताओं की कलाईयों पर खनकती रही 
माँए  लोरियां गुनगुनाती रही 
बच्चे भूख से बिलखते रहे 
कूड़े के ढेर पर बसा है 
ये शहर सारा 
गली के बाहर कुत्ते भूंकते रहे 
रात भर यूंही जलसे चलते रहे 
करवटे बदलते रहे आप 
जिस्म पर कोड़ो  के निशान उबलते रहे 
सियासतदाहों   की मजलिस में 
क्यों फर्क पड़े 
वो वोट गिनते रहे 
हम  वोट देते रहे 
 -
मनीषा