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Tuesday, April 9, 2024

दोहे

 कोई पीटे  झांझ मंजीरे कोई आज़ान उठाए 

कर ना सके जो मोल जीव का कैसे दरस वो पाए ।।


कोई करे उठक बैठक कोई सौ स्वांग रचाए

जो किसी का मन दुखाए सो कैसे ज्ञानी कहलाए।।


मन्दिर के ताले खोले , मस्जिद के दरवाज़े खोले 

मन का ताला खोल न सके बड़ ज्ञानी कैसे होए ||


माला धारो कण्ठ में दाढ़ी मूँछ बढ़ाए सब ज्ञानी बोले 

जो ना बोली बानी प्रेम की भजन अजान सब व्यर्थ होए ||


मनीषा वर्मा 

#गुफ्तगू 






तुम मिलना मुझे तब उस पार

 क्षितिज पर लालिमा जब घुल जाएगी

अंधकार भरी कई रातें भी ढल जाएंगी

तुम मिलना मुझे तब उस पार 

जब किरणों की ताल पर लहरें इठलाएंगी।।


चांदनी जब तुम्हे विकल कर जाएगी

वो एक शाम तुम्हें भी जब सताएगी

तुम मिलना मुझे तब उस पार 

जब विदा की वो बेला पास आएगी।


एक दिन लेन देन जब सब चुक जाएंगे

बही खाते सब बंद हो जाएंगे

तुम मिलना मुझे तब उस पार

जब नींद भरी ये पलकें मुंद जाएंगी।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

इतिहास में लिखा है

 सुना है इतिहास में लिखा है

किसी तानाशाह की जद में 

बहुत से चिन्हित लोग

बंदूकों की नोक पर

लाक्षागृह में स्नान के लिए चले गए

हाथों में साबुन की बट्टियाँ लिए

चुपचाप भेड़ों की तरह गर्दन झुकाए

उस गृह में जहां पानी नहीं 

मृत्यु  कर रही थी उनका इंतजार

और समाज निर्लिप्त था अपने ही

अहम में।।

आए बहुत बाद में 

संवेदना लिए बहुत लोग

तब जब लाशें सड़ चुकी थीं

मानवता जल चुकी थी

एक चुप की कीमत बहुत 

भयंकर होती है

इतिहास में ही पढ़ा है

कि काल चक्र घूमता है

मानुष की फितरत नहीं।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू