धीरे धीरे मिट रही हूँ
अंधेरो में अपने घिर रही हूँ मैं
हौले हौले बिखर रही हूँ
कच्चे कांच सी चटक रही हूँ मैं
धीमे धीमे सुलग रही हूँ
अपनी ही आँच में पिघल रही हूँ मैं
आहिस्ता आहिस्ता बुझ रही हूँ
ज़िंदगी तेरी बाँहो में खो रही हूँ मैं
मनीषा
अंधेरो में अपने घिर रही हूँ मैं
हौले हौले बिखर रही हूँ
कच्चे कांच सी चटक रही हूँ मैं
धीमे धीमे सुलग रही हूँ
अपनी ही आँच में पिघल रही हूँ मैं
आहिस्ता आहिस्ता बुझ रही हूँ
ज़िंदगी तेरी बाँहो में खो रही हूँ मैं
मनीषा
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