तेरे और मेरे जूनून में फर्क इतना सा है
तेरे पास तेरी दुनिया है और तू मेरी दुनिया है
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कैसे विश्वास करूं
छिन्न भिन्न हो चुका है जो
उसका फिर कैसे पुन: निर्माण करूं
बार बार वही बात करती हूँ
मैं अपने भीतर के सन्नाटो से डरती हूँ
कैसे भूल जाऊँ आप बीती
अब तेरे प्यार से भी मैं डरती हूँ
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वक्त बदल जाए तो मौसम बदल जाते हैं
लोग बदल जाते हैं अपने पराए बदल जाते हैं
छोड़ इन बातों वादों और इरादों को
मैंने देखा है कैसे सुबह और शाम के मंज़र बदल जाते हैं
मनीषा
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दो नन्हे हाथों से थाम रख़ा है ज़िंदगी ने मुझे
वरना मौत ने तो भेजे हैं बेइंतहा पैग़ाम मुझे
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