इस गर्म दुपहरी में
इक धूप का टुकड़ा
ज़िद से आ बैठा है
मेरे कमरे की दीवार पर
परदे के परदे से
छिपता हुआ
पीपर के उस हिलते
पात का जैसे कोई
संदेसा ले आया है
इक धूप का टुकड़ा
ज़िद से आ बैठा है
मेरे कमरे की दीवार पर
परदे के परदे से
छिपता हुआ
पीपर के उस हिलते
पात का जैसे कोई
संदेसा ले आया है
बार बार सोए बाबा की
पीठ सहलाता है
हौले से
और बाबा अनमने से
करवट बदलते है
देह पर रखी चादर
कुछ और ऊपर
खींच लेते है
पीठ सहलाता है
हौले से
और बाबा अनमने से
करवट बदलते है
देह पर रखी चादर
कुछ और ऊपर
खींच लेते है
धीरे धीरे सरकता सा कैसा
अधिकार जमाता है
सिमटने से पहले
कमरे के भीतर फैले अंधियार में
जगमगाता है
नटखट सा बार बार सताता है
अधिकार जमाता है
सिमटने से पहले
कमरे के भीतर फैले अंधियार में
जगमगाता है
नटखट सा बार बार सताता है
कैसे धीरे से जगाता है
नींद उचटाता है
जैसे तुम्हारी तरह
जाने से पहले
इक बार चूम कर
फिर आने का वादा करता है
मनीषा
नींद उचटाता है
जैसे तुम्हारी तरह
जाने से पहले
इक बार चूम कर
फिर आने का वादा करता है
मनीषा
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