सपने टूटते हैं
तारों की तरह
सपने टूटने पर
आवाज़ नही होती
कभी सुनो तो ,बस
फुट पड़ती है
धीमी सी सिसकी
खिलखिलाते ,मुस्कुराते होटों के कोरों से कहीं
देखो तो,
शायद चमक जाएँ
पलकों तक आ, सूख गए आँसू
और जानो तो, मस्त चेहरे पर
नज़र आ जाएँगी
दर्द की गहरी काली लकीरें
उस हँसते चेहरे पर
खिले चुटकुलों के बीच
खाली सूनी गहरी आँखे
व्यथित अंतर का परिचय दे जाएँगी
और किसी मरे सपने की ताज़ी लाश
अपना अक्स दिखा देगी
आँखों के नीचे पड़े काले गहरे गड्ढों में
पर चेहरे पर पड़ी बनावट की परतें
फिर ढक देंगी टूटन को एक कफन सी
और बेफिक्री का परदे में
एक खिलखिलाहट चेहरे तक तो आएगी पर
झुकी पलकों तक ना पहुँच पाएगी
मनीषा
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