कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
मन में सच का ताप लिए
तू जलता चल
चलता चल
कि राह खुद मंजिल हो जाए
चले साए ना साथ तो भी तू अकेला चल
कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
राह काटता जो
कंटक भी है वही झेलता
प्रथम पग
इस भावी पगडंडी पर
तू धरता चल
कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
कुंठाओं की सर्व शिराएँ तू
शब्द की शमशीरों से
छिन्न भिन्न करता चल
इन अंधेरों में तू
'दिनकर' बन उगता चल
कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
यह मुर्दा बस्ती है
यह मुर्दा बस्ती है
हर तरफ फाका परस्ती है
तू आजान लगता चल
वंशी की धुन पर ताल मिलाता चल
कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
अल्लाह और कुरान तुझे माफ़ करेंगे
अल्लाह और कुरान तुझे माफ़ करेंगे
राम और गीत तुझे याद करेंगे
तू कबीर की वाणी बनता चल
तू धर हाथ पर शीश चलता चल
कवि तू कहता चल
अपनी धुन मे रमता चल
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