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Wednesday, January 30, 2013

मुझे गाँधी दिखता है




मुझे गाँधी दिखता  है 
चौराहों पर मूर्तिवत 
पुस्तकों  में छपा 
स्कूल की दीवारों पर चित्रित 
कभी कभी सभागारों में 
मैं उसे संसद की दीवारों पर भी 
देखती हूँ 
उसके उजले कपड़े  
कुछ काले दिलों पर भी चढ़े देखती हूँ 
उसकी टोपी सार्वजनिक हो गई है 
मैं देखती हूँ अब आम हो गई है 
दिल्ली में एक मैदान है उसके नाम 
हर शहर में एक सड़क  मिलती है गाँधी के नाम 
राजघाट पर भजनों  के बीच उसे श्रद्धांजली  चढ़ाते  हैं 
उसे भारतीय कह लोग गौरान्वित होते हैं 
देखती हूँ मैं उसे, और सोचती हूँ
वो  फ़क़ीर,  जो हर नोट पर छपा मिलता है 
उसे कहाँ ढूंढू , वो जीवन में कहाँ उतरता है 
गाँधी अब सिर्फ मिसालों  में सिमटा मिलता है 
भाषणों में कहा मिलता है 
अब गाँधी सिर्फ चौराहों पर सजा मिलता है 
साल में दो बार कलेंडर की 
तिथियों में छिपा मिलता है 

मनीषा 


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