मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Friday, December 7, 2012
एक कतरा धूप का
आज रोटी बेलते हुए एक कतरा धूप का ,
मेरा हाथ छू गया ,
और दिल मेरा भर गया ,
मानो , जैसे सूरज ने दिया हो पैगाम ,
बहुत परदों के बीच बंद हो तुम
पर तुम को भूला नहीं मैं
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