मेरी डायरी के कुछ पन्ने
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
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Sunday, December 9, 2012
ऐसे बीत जाते हैं लम्हे
ऐसे बीत जाते हैं लम्हे जैसे मुट्ठी से फिसलती है रेत
खुशनुमा लम्हों का मिजाज़ ही कुछ ऐसा है
चादर की
सिलव
टे समेटते गुजरती है लम्बी रात
तेरी याद का सिलसिला ही कुछ ऐसा है
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