इस बार माघ में
उग आईं हैं
मानुष पर कंटीली झाड़ियां
जो आस पास चलते हुए
उनके हमरूपों को
लहूलुहान किए दे रहीं हैं।।
यह रंगों भरे फाल्गुन में
ये काला विभीत्स रंग कौन
मिला गया
गुलाल नहीं बस
आस पास ढेर है राख का
और पसरी हुई है हवा में
शवों की गंध
सुना है सुदूर एक देश ने दूसरे देश
के सभी बच्चों को
मौत के घाट उतार दिया है
और जो जीवित हैं
उन्हें तड़प तड़प कर भूखा
प्यासा मरने को विवश कर दिया है।।
माएं मार दी गई हैं
और पिता सूली पर लटका दिए गए हैं
दोषी निर्दोषी सब मिथ्या विवाद में
सामूहिक रूप से
दफना दिए गए हैं ।।
घृणा के बीज अब फल चुके हैं
आदमी और जानवर में फ़र्क
बस इतना ही बचा कि
जानवर अभी भी कंटीले तारों के
पार जा सकते हैं
दाना पानी खोजने।।
मिथक बन चुकी हैं
न्याय की गुहारें
कौन किसके साथ है
किसने किया पहला प्रहार ?
क्या सही और क्या गलत है
क्या फ़र्क पड़ता है?
रक्त पी चुकी है इतना ये धरती
कि देखो
इस बार वसंत का रंग लाल है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
No comments:
Post a Comment