माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुँधे मोए इक दिन ऐसा आयेगा मैं रुँधूगी तोए
मुसाफिर रे !यह जग रैन बसेरा कौन जाने कहां तेरा ठिकाना ?
बांध ले अपने सपनों की गठरी हर पल आना जाना
छूटे बंधु छूटे अपने कौन जाने क्या रहा अपना क्या पराया
मुसाफिर रे कहां तेरा ठिकाना
मनीषा वर्मा
#गुफ्तगू
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