Pages

Saturday, September 28, 2024

कंकरीट के जंगल

 हरे भरे वन में जो कंकरीट बोए

अब उन्मुक्त श्वास कहाँ से होए


जलन आँखों मे और दिल घबराए

सम विषम से कितना सुलझाए


आग लगाए पराली जलाए

धुंआ धुंआ शहर हो जाए


कहीं बाढ़ कहीं सूखा कहर बरपाए

मूरख इशारा बूझ ना पाए


समय बीता जाए व्यर्थ जन्म गंवाए

त्राहि त्राहि कर प्राण गंवाए


मनीषा वर्मा

No comments:

Post a Comment