हरे भरे वन में जो कंकरीट बोए
अब उन्मुक्त श्वास कहाँ से होए
जलन आँखों मे और दिल घबराए
सम विषम से कितना सुलझाए
आग लगाए पराली जलाए
धुंआ धुंआ शहर हो जाए
कहीं बाढ़ कहीं सूखा कहर बरपाए
मूरख इशारा बूझ ना पाए
समय बीता जाए व्यर्थ जन्म गंवाए
त्राहि त्राहि कर प्राण गंवाए
मनीषा वर्मा
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