जमीँ की धूल थी आसमा की चाह कर बैठी ।
अपनेँ ही हाथोँ दिल की दुनिया तबाह कर बैठी ।
कभी खत्म न होँगी अब जिसकी सजाऍ,
या खुदा ये मैँ कैसा गुनाह कर बैठी ।
अपनेँ ही हाथोँ दिल की दुनिया तबाह कर बैठी ।
कभी खत्म न होँगी अब जिसकी सजाऍ,
या खुदा ये मैँ कैसा गुनाह कर बैठी ।
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