कभी मान भी अपमान सा लगता है
घर की बेटी होना भी अपराध सा लगता है
उन संस्कारों पर प्रश्नचिंह सा लगता है
जब अपना आप भी पराया सा लगता है
परम्परा की वेदी पर बलि सा अपना आप लगता है
मनघट पर हर कदम दायरा सा लगता है
मनीषा
घर की बेटी होना भी अपराध सा लगता है
उन संस्कारों पर प्रश्नचिंह सा लगता है
जब अपना आप भी पराया सा लगता है
परम्परा की वेदी पर बलि सा अपना आप लगता है
मनघट पर हर कदम दायरा सा लगता है
मनीषा
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