जब जब उतरती है
वसुधा के अंचल पर रात नई
मन को आलोड़ित करती है
फिर फिर बात वही
यूँ तो समय ने कितनी देखी होगी
रातें नई नवेली
पर रुक था क्षण भर काल भी
देख वो छवि सलोनी
मिलन था वो पल या बिछोह की थी राह बनी
जब नैनो की नैनो से थी तकरार हुई
मन आज भी उसांस भर रह जाता है
सोचता है बावरा
उन नैनो में थी भी या नहीं बात कोई
मनीषा
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