ख्यालों में एक नदी सी बहती है
चांदनी भी रात भर उदास रहती है
भीतर बाहर एक सर्द नमी सी बनी रहती है
वो आता है ले कर लौट जाने की तारीख
घर में एक कमी सी बनी रहती है।।
मुस्कुराहटें उदास सी खिली रहती हैं
बना तो लिया है आशियां अपना
आने वालों की कमी सी रहती है
शायद ना दे सकी उसे
रुकने की कोई वजह
जो उसे जाने की पड़ी रहती है।।
बिछी चादर पर एक सिलवट सी पड़ी रहती है
बिस्तर के किनारे एक किताब अधूरी सी रखी रहती है
भोर आती है चुपके से आंगन में फैली धूप के साथ
रात भर उसके आने की आहट लगी रहती है।।
मनीषा वर्मा
#गुफ़्तगू
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