Pages

Thursday, July 20, 2023

आह! कब तक!

 शर्म शायद मर गई

उन्हें नहीं किया नंगा

खुद हुए तुम नंगे

वे तो ढक लेंगी तन को

मन के घाव भी सह लेंगी

पर तुम? तुम कैसे देखोगे खुद को 

अपने भीतर के उस अट्टहास

लगाते दुशासन को

जो तुम में समा गया है

और डराता है तुम्हारे आस पास 

रहती मां बहन और बेटियों को

जानती हूं कृष्ण अब नहीं आते 

ना कोई जागता है भीम किसी के भीतर 

इसलिए तुम्हें तो जीना ही होगा 

अपने इस पिशाच रूप में 

तुमने लिया है ना जन्म इस राम की धरती पर 

तो यही दंड है तुम्हारा

तुम्हारे आस पास रहने वाली 

कोई स्त्री कभी महफूज़ नहीं रहेगी

सदियों तक विलाप गूंजेगा इस ब्रह्मवृत भूमि पर 

और द्रौपदी की तरह हर स्त्री ढोएगी

इल्जाम अपने हास्य का , तंज सिर उठाने का 

और संकोच जन्म का।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

Wednesday, July 19, 2023

उम्मीद के चिराग

 उम्मीद के चिराग भी अंधेरे भर देते हैं

ये तेरे ख़्वाब, कभी नींदें भर देते हैं।।


ज़िक्र करते हैं तेरा बहुत बेरूखी से

रोज़ बहाने से तेरी खबर लेते हैं ।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू

Tuesday, July 18, 2023

पुरुष की कविता

 पुरुष की कविता भिन्न होती है 

कविता के पुरुष भी भिन्न होते हैं

पुरुष प्रेमी पिता भाई सहोदर सब होते हैं कविता में 

पर कोमल करुण दारुण नही होते 


पुरुष की कविता  है

शांत धीर गंभीर कविता

दोस्ती यारी सड़कों की आवारगी की कविता

कविता में भी पुरुष कमजोर  नहीं हैं

पिता अश्रु छिपा जाते हैं, प्रेमी वियोग से पागल तो हो जाते हैं

परंतु रोते नहीं हैं

ना कोमल हैं,न उलझे  से 

ना विलाप करते बस खामोश और चुप्प से हैं पुरुष कविता में भी

पुरुष की कविता बस वीर और बलिदानी सी खड़ी है 

उनकी तरह 

पुरुष की कविता भिन्न होती है 

कविता के पुरुष भी भिन्न होते हैं।।


मनीषा वर्मा 


#गुफ़्तगू

Tuesday, July 4, 2023

इस शहर के आसमां पर

 इस शहर के आसमां पर हैरत से तुमको देखता चांद

एक अकेला वो भी है सितारों में 

एक अकेले तुम भी हो रोशनी के समंदर में 

कभी पूरा कभी अधूरा वो भी है

आधे आधे पर पूरे से कुछ तुम भी हो

नीले काले आसमां पर नितांत अकेला तुम सा वो चांद

हैरत से तुमको देखता चांद ।।


मनीषा वर्मा 

#गुफ़्तगू